सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “खोज” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

कैसे खो गया, कहाँ खो गया,

चलो ढूंढ लेते हैं हम सब!

किसने चुराया, किसने छिपाया,

चलो ढूंढ निकालें हम सब!

*

फाड़ के फेंके इस नकाब को,

ठुकरा के ये जाली बड़प्पन,

सारी समस्याएँ और चिंता,

उतार लो आँखों से ये ऐनक!

*

करे संपर्क दोस्तों से फिर से,

मिलने का संकल्प करे हम,

स्थलकाल को निश्चित करके,

करें आमंत्रित वो सुनहरे पल!

*

अवश्य करना नियम का पालन,

अपना अहम्, न लाना भीतर,

साथी पुराने बनकर केवल,

कदम बढाना अपना अंदर!

*

खेल, मस्ती और जी भर बातें,

खिलखिला के हँसेगे फिर से,

खुशियों को लगाएंगे गले,

यादों की बारात से मिल के!

*

न गुम हुआ, न खोया है,

ये तो अपने ही पास है,

चंचल, अल्हड, बचपन ये,

मन में संजोकर रखा है!

   ☆        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Kavita Joshi

Very beautifully written 👏