सुश्री प्रणिता खंडकर
☆ कविता – “खोज…” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆
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कैसे खो गया, कहाँ खो गया,
चलो ढूंढ लेते हैं हम सब!
किसने चुराया, किसने छिपाया,
चलो ढूंढ निकालें हम सब!
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फाड़ के फेंके इस नकाब को,
ठुकरा के ये जाली बड़प्पन,
सारी समस्याएँ और चिंता,
उतार लो आँखों से ये ऐनक!
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करे संपर्क दोस्तों से फिर से,
मिलने का संकल्प करे हम,
स्थलकाल को निश्चित करके,
करें आमंत्रित वो सुनहरे पल!
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अवश्य करना नियम का पालन,
अपना अहम्, न लाना भीतर,
साथी पुराने बनकर केवल,
कदम बढाना अपना अंदर!
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खेल, मस्ती और जी भर बातें,
खिलखिला के हँसेगे फिर से,
खुशियों को लगाएंगे गले,
यादों की बारात से मिल के!
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न गुम हुआ, न खोया है,
ये तो अपने ही पास है,
चंचल, अल्हड, बचपन ये,
मन में संजोकर रखा है!
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© सुश्री प्रणिता खंडकर
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈