हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ बूँदें ओस की ☆ – श्री दिवयांशु शेखर
श्री दिवयांशु शेखर
(युवा साहित्यकार श्री दिवयांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। आप मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। )
☆ बूँदें ओस की ☆
पत्तियों के सतह पे टूटे काँच सा बिखरा हुआ,
हरी चादर को सफ़ेद रत्न सा जकड़ा हुआ,
चमकती, सिहरती रवि के तपन से,
थिरकती, मचलती पवन के कंपन से,
छूने से ही एक नाजुक एहसास करा दे,
महसूस करने पे जो सोये ख़्वाब जगा दे,
रात में शुरू होकर दिन में खत्म होती कहानी एक निर्दोष की,
चँद लम्हों में ही खुद को जीकर, ज़िन्दगी जीना सिखाती बूँदें ओस की।
© दिवयांशु शेखर