महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.८॥ ☆

त्वाम आरूढं पवनपदवीम उद्गृहीतालकान्ताः

प्रेक्षिष्यन्ते पथिकवनिताः प्रत्ययाद आश्वसन्त्यः

कः संनद्धे विरहविधुरां त्वय्य उपेक्षेत जायां

न स्याद अन्यो ऽप्य अहम इव जनो यः पराधीनवृत्तिः॥१.८॥

 

गगन पंथ चारी , तिम्हें देख वनिता

स्वपति आगमन की लिये आश मन में

निहारेंगी फिर फिर ले विश्वास की सांस

अपने वदन से उठा रूक्ष अलकें

मुझ सम पराधीन जन के सिवा कौन

लखकर सघन घन उपस्थित गगन में

विरह दग्ध कान्ता की अवहेलना कब

करेगा कोई जन भला किस भवन में

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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