डॉ हरीश नवल

Harish Naval
जन्म : 8 जनवरी, 1947 को उनकी ननिहाल नकोदर, जिला जालंधर, पंजाब॒ में।

शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए., एम.लिट., पी-एच.डी.।

प्रकाशन : ‘बागपत के खरबूजे’, ‘मादक पदार्थ और पुलिस’, ‘पुलिस मैथड’ आदि के अलावा सात व्यंग्य पुस्तकें, अन्य विधाओं की सात पुस्तकें, 65 पुस्तकों में सहयोगी लेखन और छह संपादित पुस्तकें एवं देश-विदेश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अब तक 1500 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।

सम्मान-पुरस्कार : युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार, पं. गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार, साहित्य कला परिषद् पुरस्कार सहित अब तक राष्ट्रीय स्तर के 21 सम्मान/पुरस्कार प्राप्त।
‘इंडिया टुडे’ के साहित्य सलाहकार और एन.डी.टी.वी. के हिंदी कार्यक्रम के परामर्शदाता रहे; दिल्ली वि.वि. के वोकेशनल कॉलेज के कार्यकारी प्रधानाचार्य और ‘हिंद वार्त्ता’ के मुख्य संपादक सलाहकार भी रहे। बल्गारिया के सोफिया वि.वि. में ‘विजिटिंग व्याख्याता’ और मॉरीशस वि.वि. में ‘मुख्य परीक्षक’ भी रहे। 30 देशों की यात्रा।

संप्रति : स्वतंत्र लेखन।

☆ डॉ हरीश नवल बजरिये अंतरताना – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

किसी भी व्यक्ति को जानने समझने के लिये अंतरताना यानी इंटरनेट आज वैश्विक सुलभ सबसे बढ़ियां संसाधन है.  एक क्लिक पर गूगल सहित ढ़ेरो सर्च एंजिन व्यक्ति के विषय में अलग अलग लोगों के द्वारा समय समय पर पोस्ट किये गये समाचार, आलेख, चित्र, वीडीयो, किताबें वगैरह वगैरह जानकारियां पल भर में स्क्रीन पर ले आते हैं.  यह स्क्रीनीग बड़ी रोचक होती है.  मैं तो कभी कभी स्वयं अपने आप को ही सर्च कर लेता हूं.  कई बार स्वयं मेरी ही विस्मृत स्मृतियां देखकर प्रसन्नता होती है. अनेक बार तो अपनी ही रचनायें ऐसे अखबारों या पोर्टल पर पढ़ने मिल जाती हैं,  जिनमें कभी मैने वह रचना भेजी ही नही होती.  एक बार तो अपने लेख के अंश वाक्य सर्च किये और वह एक नामी न्यूज चैनल के पेज पर बिना मेरे नामोल्लेख के मिली.  इंटरनेट के सर्च एंजिन्स की इसी क्षमता का उपयोग कर इन दिनो निजी संस्थान नौकरी देने से पहले उम्मीदवारों की जांच परख कर रहे हैं.  मेरे जैसे माता पिता बच्चो की शादी तय करने से पहले भी इंटरनेट का सहारा लेते दिखते हैं. अस्तु.

मैने हिन्दी में हरीश नवल लिखकर इंटरनेट के जरिये उन्हें जानने की छोटी सी कोशिश की.  एक सेकेन्ड से भी कम समय में लगभग बारह लाख परिणाम मेरे सामने थे.  वे फेसबुक,  से लेकर विकीपीडीया तक यू ट्यूब से लेकर ई बुक्स तक,  ब्लाग्स से लेकर समाचारों तक छाये हुये हैं.  अलग अलग मुद्राओ में उनकी युवावस्था से अब तक की ढ़ेरों सौम्य छवियां देखने मिलीं.  उनके इतने सारे व्यंग्य पढ़ने को उपलब्ध हैं कि पूरी रिसर्च संभव है.  इंटरनेट ने आज अमरत्व का तत्व सुलभ कर दिया है.

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

बागपत के खरबूजे लिखकर युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले हरीश जी आज व्यंग्य के परिपक्व मूर्धन्य विद्वान हैं.  उन्हें साहित्य के संस्कार परिवार से विरासत में मिले हैं. उनकी शालीनता व शिष्‍टता उनके साहित्य व व्यक्‍तित्व की विशेषता है. उनसे फोन पर भी बातें कर हृदय प्रफुल्लित हो जाता है.  वे इतनी सहजता और आत्मीयता से बातें करते हैं कि उनके विशाल साहित्यिक कद का अहसास ही नही होता.  अपने लेखन में मुहावरे और लोकोक्‍तियों का रोचक तरीके से प्रयोग कर वे पाठक को बांधे रहते हैं.  वे माफिया जिंदाबाद कहने के मजेदार प्रयोग करने की क्षमता रखते हैं.  पीली छत पर काला निशान, दिल्ली चढ़ी पहाड़, मादक पदार्थ, आधी छुट्टी की छुट्टी, दीनानाथ का हाथ, वाया पेरिस आया गांधीवाद, वीरगढ़ के वीर,  निराला की गली में जैसे टाइटिल ही उनकी व्यंग्य अभिव्यक्ति के परिचायक हैं.

प्रतिष्ठित हिन्दू कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहते हुये उन्होंने ऐसा अध्यापन किया है कि  उनके छात्र जीवन पर्यंत उन्हें भूल नही पाते.  उन्होने शिक्षा के साथ साथ छात्रो को संस्कार दिये हैं और उनके  व्यक्तित्व का रचनात्मक विकास किया है.  अपने लेखन से उन्होने मेरे जैसे व्यक्तिगत रूप से नितांत अपरिचित पाठको का विशाल वैश्विक संसार रचा है.   डॉ. हरीश नवल बतौर स्तम्भकार इंडिया टुडे, नवभारत टाइम्स, दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ, कल्पांत, राज-सरोकार तथा जनवाणी (मॉरीशस) से जुड़े रहें हैं.  उन्होने इंडिया टुडे, माया, हिंद वार्ता, गगनांचल और सत्ताचक्र के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण काम किये हैं. वे एन.डी.टी.वी के हिन्दी प्रोग्रामिंग परामर्शदाता, आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम सलाहकार, बालमंच सलाहकार, जागृति मंच के मुख्य परामर्शदाता, विश्व युवा संगठन के अध्यक्ष, तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय सह-संयोजक पुरस्कार समिति तथा हिन्दी वार्ता के सलाहकार संपादक के पद पर सफलता पूर्वक काम कर चुके हैं.  वे अतिथि व्याख्याता के रुप में सोफिया वि.वि. बुल्गारिया तथा मुख्य परीक्षक के रूप में मॉरीशस विश्वविद्यालय (महात्मा गांधी संस्थान) से जुड़े रहे हैं. दुनियां के ५० से ज्यादा देशो की यात्राओ ने उनके अनुभव तथा अभिव्यक्ति को व्यापक बना दिया है.  उनके इसी हिन्दी प्रेम व विशिष्ट व्यक्तित्व को पहचान कर स्व सुषमा स्वराज जी ने उन्हें ग्यारहवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की पांच सदस्यीय आयोजक समिति का संयोजक मनोनीत किया था.

हरीश जी ने आचार्य तुलसी के जीवन को गंभीरता से पढ़ा समझा और अपने उपन्यास रेतीले टीले का राजहंस में उतारा है.  जैन धर्म के अंतर्गत ‘तेरापंथ’ के उन्नायक आचार्य तुलसी भारत के एक ऐसे संत-शिरोमणि हैं, जिनका देश में अपने समय के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि विभिन्न क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है. आचार्य तुलसी का दर्शन, उनके जीवन-सूत्र, सामाजिक चेतना, युग-बोध, साहित्यिक अवदान और मार्मिक तथा प्रेरक प्रसंगों को हरीश जी ने इस कृति में प्रतिबिंबित किया है. पाठक पृष्ठ-दर-पृष्ठ पढ़ते हुये आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व और अवदान से परिचित होते हैं व आत्मोत्थान की राह ढ़ूंढ़ सकते हैं.

उनके लेखन में विविधता है. समीक्षात्मक लेख, पटकथा लेखन, संपादन, निबंध लेखन, लघुकथा, व्यंग्य के हाफ लाइनर, जैसे प्रचुर प्रयोग,  और हर विधा में श्रेष्ठ प्रदर्शन उन्हें विशिष्ट बनाता है. अपनी कला प्रेमी चित्रकार पत्नी व बेटियों के प्रति उनका प्यार उनकी फेसबुक में सहज ही पढ़ा जा सकता है.  उन्हें यू ट्यूब के उनके साक्षात्कारो की श्रंखलाओ व प्रस्तुतियो में जीवंत देख सुन कर कोई भी कभी भी आनंदित हो सकता है.  लेख की शब्द सीमा मुझे संकुचित कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि “हरीश नवल बजरिये अंतरताना” पूरा एक रिसर्च पेपर बनाया जा सकता है.

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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