सुश्री शिल्पा मैंदर्गी
(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)
☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -8 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆
(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)
(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )
मेरी नृत्य की यात्रा का परमोच्च बिंदू और अविस्मरणीय पल अंडमान मे स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी को जिस कमरे मे बंद किया था, वहा लिखे हुए गीत पर मेरे गुरु के साथ नृत्य करने का मुझे आया हुआ अनमोल क्षण| यह परमभाग्य का क्षण हमे मिला और हमारे जन्म का कल्याण हुआ|
२०११ वर्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी के धैर्य से दौड़ने का शतक साल| इस महान साहस को उच्च कोटी का प्रणाम करने के लिए सावरकर प्रेमियों ने ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर अंडमान पदस्पर्श शताब्दी उत्सव’ चार जुलै से बारह जुलै तक इस काल में आयोजित किया था। अंडमान के उस जेल में जाकर सावरकर जी के उस कमरे को नमन करने का भाग्य जिन चुनें हुए भाग्यवान लोगों को मिला, उस में हम तीन, याने मैं, मेरी गुरु सौ. धनश्री आपटे और मेरी सहेली नेहा गुजराती थे|
मै खुद को खुशनसीब समझती हूँ कि मुझे अंडमान जाने को मिला| उसके लिये सावरकर जी के आशीर्वाद, मेरे माता पिता जी का आधार, धनश्री दीदी की मेहनत और मेरी बहन सौ. वर्षा और उसके पति श्री. विनायक देशपांडे इन सबकी मदद का लाभ मुझे मिला|
सांगली जिले में ‘बाबाराव स्मारक’ समिती है| उधर बहुत सावरकर प्रेमी लोग काम करते है| उस में से एक थे श्री बालासाहेब देशपांडे| २०११ साल स्वातंत्र्य स्वातंत्र्यवीर जी के धैर्य, साहस का सौवां साल था| अपनी भारत माता पारतंत्र्य में जकड़ी हुई थी| यह वे सह नहीं पाते थे| इस एक ध्येय के कारण ही उन्होंने एक उच्चतम पराक्रम किया| उसके कारण ही हम सब भारतीय स्वातंत्र्य का आनंद उठा रहे है, खुली सांस ले रहे है| उनकी थोडी तो याद हमें रखनी चाहिये ना? उनको अंडमान जाकर प्रणाम करना चाहिए, ऐसा इन सब लोगों ने तय किया| स्वातंत्रवीरों के गीत गाकर नृत्याविष्कार करके प्रणाम करने का तय किया था| उसके लिये मैं, धनश्री दीदी और नेहा ने नृत्य की तैयारी की थी|
लगभग दो-तीन महीने हम नृत्य की तैयारी कर रहे थे| जेल के उस कमरे में सावरकर जी ने काटों से, कीलों से लिखी हुई कविता पेश करना तय किया| उस गीत को विकास जोशी जी ने सुर लगाकर सांगली की स्वरदा गोखले मैडम से कविता सादर की| धनश्री दीदी के कठिन प्रयास से और मार्गदर्शन से नृत्य अविष्कार पेश किया गया|
मैं खुद को बहुत खुशनसीब समझती हूँ। हम तीनों ने सावरकर जी के उस कमरे में, जहां उनको बंद करके रखा था, उधर नृत्य पेश किया| उस कमरे का नंबर १२३ था| आश्चर्य की बात यह है कि, लोगों को, पर्यटकों को देखने के लिए वह कमरा जैसा था वैसा ही रखा हैं| हम जिस दिन उस कमरे में गए थे, वह दिन सावरकर जी ने धैर्यता से जो छलांग मारी थी, वह वही दिन था | उस दिन सावरकर जी की तस्वीर उधर रखी थी| सब कमरा फूलों से सजाया था| जिस दीवारों को सावरकर जी का आसरा मिला था उस दीवारों के ही सामने हमने सावरकर जी का अमर काव्य, अमर गान पेश किये| वह कमरा सिर्फ १०x१० इतना छोटा था| जैसे-तैसे तीन चार आदमी खड़े रह सकते हैं इतना ही था|लेकिन हमें उन्ही दीवारों को दिखाना था कि उनके ऊपर सावरकर जी ने लिखे हुए अमर, अनुपम कविताएं नृत्य के साथ उन्हें बहाल कर रहे हैं| धनश्री दीदी ने बहुत अच्छी तरह से सायं घंटा नाम का नृत्य पेश किया| उस कविता का मतलब समझ लेने जैसा है| जेल में बंदी होते थे उस समय सावरकर जी के हाथों में जंजीर डालकर बैल की तरह घुमा-घुमा कर तेल निकालना पड़ता था| बहुत ही कठिन और परेशानियों का काम था वह| उस वक्त का जेलर बहुत क्रूरता से पेश आता था| परिश्रम के सब काम खत्म होने के बाद शाम को कब घंटी बजाता है इस पर कैदियों की नजर होती थी| शाम की घंटी बज गई तो हाय! यह दिन खत्म हो गया ऐसा लगता था| वह काव्य जिस कमरे में लिखा था उसी कमरे में धनश्री दीदी ने नृत्य पेश किया| वह जेलर कैसे परेशान करता था वह उन्होंने दिखाया| उसी के साथ सावरकर जी की संवेदना अच्छी तरह से पेश की गई|
मैं और नेहा गुजराती हम दोनों ने सावरकर जी मातृभूमि की मंगल कविता मतलब “जयोस्तुते” पेश किया| बहुत बुद्धिमान ऐसे सावरकरजी ने जो महाकाव्य लिखा और मंगेशकर भाई-बहन ने बहुत ही आत्मीयता से वह भावनाएं हम तक पहुंचाई, अपने मन में बिठाई, उस नृत्य को पेश करने का भाग्य हमें मिला|
‘जयोस्तुते’ पेश करते समय मैं शिल्पा ‘भारत माता’ बनी थी|नेहा ने नकारात्मक चरित्र पेश किया था| याने वह नकारात्मक चरित्र और भारत माता की लड़ाई हमने दिखाइ थी| तुमको बताती हूं, ‘हे अधम रक्त रंजिते’ इस पर नृत्य करते समय, मुझमें जोश आ गया था| वह नकारात्मक शक्ति लड़ते वक्त जब पैरों पर गिर गई थी, तब मुझे भी बहुत खुशी हुई थी| इस प्रकार जयोस्तुते इस जगह पर पेश करने को मिला, इसे मैं अपनी किस्मत समझती हूँ|
प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे
मो ७०२८०२००३१
संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी, दूरभाष ०२३३ २२२५२७५
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈