सुश्री शिल्पा मैंदर्गी
(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)
☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 10 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆
(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)
(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )
अंदमान के उस रमणीय सफर से मेरी नृत्य के क्षेत्र में और मेरे जिंदगी में भी मैंने बहुत बड़ी सफलता पाई थी| अंदमान से आने के बाद मुझे बहुत जगह से नृत्य के कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया| मैंने बहुत छोटे-बड़े जगह पर, गलियों में भी मेरे नृत्य के कार्यक्रम पेश किए और मेरी तरफ से सावरकर जी के विचार सब लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया| मेरा यह प्रयास बहुत छोटा था फिर भी मेरे और मेरे चाहने वाले दर्शकों के मन में आनंद पैदा करने वाला था| मेरा प्रयास, मेरी धैर्यता मिरज के लोगों ने देखी और २०११ दिसंबर माह में मिरज महोत्सव में ‘मिरज भूषण पुरस्कार’ देकर मुझे सम्मानित किया गया|
‘अपंग सेवा केंद्र’ संस्थाने मुझे ‘जीवन गौरव पुरस्कार’ देखकर सन्मानित किया| मैं जहा पढ रही थी उस कन्या महाविद्यालय ने ‘मातोश्री पुरस्कार’ देकर मेरा विशेष सन्मान किया|
मेरे नृत्य का यह सुनहरा पल शुरू था तब मेरी गुरु धनश्री दीदी के मन में कुछ अलग ही खयाल शुरू था| उनको मुझे सिर्फ इतने पर ही संतुष्ट नहीं रखना था| उनकी बात सुनकर मुझे केशवसुतजी की कविता की पंक्तियां याद आ गई,
“खादाड असे माझी भूक, चकोराने मला न सुख
कूपातील मी नच मंडूक, मनास माझ्या कुंपण पडणे अगदी न मला हे सहे .”
और दीदी ने मुझे भरतनाट्यम लेकर एम.ए. करने का खयाल मेरे सामने रखा, जिसको मैंने बड़ी आसानी से हा कह दिया| क्योंकि दीदी को प्राथमिक तौर पर और शौक के लिए नृत्य करने वाली लड़की नहीं चाहिए थी, बल्कि उनको मुझसे एक परिपक्व और विकसित हुई नर्तकी चाहिए थी जिसके माध्यम से भारतीय शास्त्रीय नृत्य ‘भरतनाट्यम’ इस प्रकार का प्रसार सही तरह से सब जगह किया जाए|
दीदी ने केवल दर्शकों की प्रतिक्रिया और खुद पर निर्भर न रहते हुए उन्होंने मेरा नृत्य उनकी गुरु सुचेता चाफेकर और नृत्य में उनके सहयोगियों के सामने पेश करके उनसे सकारात्मक प्रतिक्रिया हासिल की और मुझे एम.ए. के लिए हरी झंडी मिली|
प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे
मो ७०२८०२००३१
संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी, दूरभाष ०२३३ २२२५२७५
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈