(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)
☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 14 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆
(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)
(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )
इतने साल के अथक परिश्रम, तपश्चर्या के बाद जिस सुवर्ण काल की राह देखती थी, वही वक्त आज मेरे सपने में आ गया है। मैंने भरतनाट्यम जैसे कठिन नृत्य प्रकार में एम.ए. की पदवी संपादन करके ‘मास्टर्स’ की उपाधि प्राप्त की थी। यही क्षण मेरे माता-पिता जी, घर के सभी लोग, गोखले चाची, श्रद्धा और मेरी अनेक सहेलियां, सबके लिए हमेशा के लिए ध्यान में रखने का क्षण था। आनंद का समय था, सफलता का क्षण था।
एम.ए की पदवी प्राप्त करने के बाद मेरा व्यक्तित्व बदल गया। सच तो यह है कि- इस अवस्था में परिस्थिति से जूझते जूझते घर के कोने में बैठ जाती थी। माता-पिता जी की हमेशा की चिंता बन कर रह जाती थी। फिर भी इस आफत से दूर जाकर मैंने यशस्विता प्राप्त कर ली थी।
बहुत पाठशालाओं, महिला मंडल, रोटरॅक्ट क्लब, लायन्स क्लब से मुझे नृत्य के कार्यक्रमों का बुलावा आता था। समाज में मेरी पहचान को ‘अंध शिल्पा’ न रहकर ‘नृत्यांगना’ नाम से पुकारा जाता था। मेरे रास्ते में भाग्य से कलाकार का आयुष्य आ गया। उसे पहचाना जाने लगा।
हमेशा कार्यक्रम, ड्रेसअप, मेकअप, हेयर स्टाइल, अलंकार पहनना, पांव में घुँघरू बांधना, कार्यक्रम स्थल पर वक्त पर पहुंचना, इसमें मुझे बहुत खुशी मिलती थी। घुंघरू के मधुर मंजुळ नाद से मुझे जीवन का अनोखा संगीत प्राप्त हुआ। तालियों की आवाज, अभिप्राय, लोगों की मेरे पीठ पर अभिमान से थपथपाई हुई आवाज, लोगों ने मेरे रंगमंच से नीचे उतरते ही प्रसन्नता से हाथ में हाथ लेकर मुझे ऊंचाई पर बिठाना, इन सब बातों से मैं हर्षित हो गई। मेरे जीवन को बहुत ऊंचाई पर ले गए। मेरे गौरव के कारण मां और पिताजी के चेहरे पर खुशियां, समाधान, शांति दिखाई देती थी।
भरतनाट्यम में एम.ए. पदवी प्राप्त करना मेरे लिए और ताई की तपश्चर्या का लंबा काल था, प्रवास था। उसकी फलश्रुति के रूप में पदवी का सुंदर सुहाना फल मिला था। इस आनंद को प्रकट करने के लिए माताजी पिताजी ने कुटुंब उत्सव करने का तय किया। वह दिन मेरे लिए ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसा ही था। इस कार्यक्रम में मेरे सारे परिवारजन, घर के लोग, आपटे कुटुंब, सुपरिचित सब लोगों को निमंत्रित किया था। इन सब लोगों के सामने मैंने मेरी कला भी सादर की थी, सभी लोग नृत्य का आनंद ले रहे थे।
प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे
मो ७०२८०२००३१
संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी, दूरभाष ०२३३ २२२५२७५
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈