सुश्री शिल्पा मैंदर्गी
(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)
☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 15 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆
(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)
(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )
मेरी नृत्य की यह यात्रा शुरू थी। उसमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। उसी वक्त मेरे आयुष्य में कुछ अच्छी घटनाएं भी हो रही थी। इस मधुर और मनोहर यादों में मुझे समझने वाले दर्शकों का भी सहयोग मिला था। इन सब की यादों की माला में मेरी ताई, गोखले चाची, श्रद्धा, मम्मी-पापा, टी.म.वी. की अनघा जोशि मॅडम, मेरे भाई बहन, मेरे काम में मदद करने वाली मेरी प्यारी सहेलियां, रिक्षा चलाने वाले चाचा और दर्शक भी थे।
ताई की बहुत मिठास याद मुझे बताने का मन हो रहा है। नृत्य सीखने से पहले स्तर पर रहने के बाद बहुत बरस के बाद कौन सा चित्र देखने को मिलेगा यह मालूम नहीं था। समाज की प्रतिक्रिया कैसी होगी यह भी मालूम नहीं था। नृत्य शुरू रहेगा या नहीं ऐसे द्विधा मनःस्थिति में रहती थी। मुझे अचानक कहा गया कि दीपावली के बाद ‘सुचिता चाफेकर’ निर्मित ‘कलावर्धिनी’ की तरफ से होने वाली नृत्यांगना कार्यक्रम में तुझे ‘तीश्र अलारूप’ याने नृत्य का पहला पाठ पेश करना है, पुना मे ‘मुक्तांगण’ हॉल में, सुनकर मैं सोच में पड़ गई। क्योंकि खुद ताई ने पुणे के कार्यक्रम के लिए मेरा नाम दिया था। पुणे में मेरा कोई रिश्तेदार नहीं था। दीदी मुझे अपने मायके लेकर गई। उधर खाना करके आराम करने के बाद हम हॉल में आ गए। मैं सज-धज के मेकअप रूम में तैयार होकर बैठी थी। बाहर से इतने भीड़ से दीदी आगे आ गई। उन्होंने मुझे टेबल पर बिठाया और खुद नीचे बैठकर मेरे हाथ और पांवों को आलता लगाया। यह मेरे जिंदगी का बहुत बड़ा सम्मान था।
मेरे नृत्य का कार्यक्रम बहुत रंग में आया था और खुद सुचेता चाफेकर और पुणे के दर्शक मेरे पीठ थपथपाकर प्रशंसा करने लगे, मेरी तारीफ करने लगे। वह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय है।
वैसे ही दोपहर की कड़ी धूप में अपना सब काम छोड़कर, संसार की महत्व का काम बाजू में रखकर तीन बजे धूप में मेरी एम.ए. की पढ़ाई करने के लिए तैयार करवाने वाली मेरी गोखले चाची को इस जीवन में कभी भी भूल नहीं पाती।
खुद की कॉलेज की पढ़ाई करते करते मेरे लिए एम.ए. की रायटर मन से हंसते-खेलते मुझे साथ देने वाली मेरी सहेली, मेकअपमेन, श्रद्धा म्हसकर, मेरे अपूर्वाई की सहेली बन गई मेरी भाग्य से।
टि.म.वी की अनघा मैडम ने मुझे जो चाहे मदद की थी। उसी के साथ ही मेरी दूसरी सहेली ‘सविता शिंदे’ मेरी जिंदगी के अधिक करीब आ गई। मुझे घूमने को लेकर जाकर मेरे साथ अच्छी अच्छी बातें करते करते हम एक दूसरों की कठिनाईयां समझकर दूर करते थे।
जब हमारे घर से क्लास तक छोड़ने कोई नहीं होते थे तो काॅर्नर के रिक्षा वाले चाचा मेरे पापा जी को कहते थे कि हम शिल्पा जी को क्लास तक छोड़ कर फिर वापस लेकर घर छोड़ देंगे। पिताजी लोगों की परख करके ही मुझे उनके साथ जाने को कहते थे।
मेरे मन में ऐसी सोच आती है, सच में मुझे आंखें नहीं होती तो भी बहुत सी आंखों ने मुझे सहारा दिया है। जिसकी वजह से मैं अनेक आंखों से दुनिया देख रही हूँ, सुबह देख रही हूँ, खुशियाँ मना रही हूँ।
प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे
मो ७०२८०२००३१
संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी, दूरभाष ०२३३ २२२५२७५
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈