श्री अरुण कुमार डनायक
(श्री अरुण कुमार डनायक जी महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. आज प्रस्तुत है श्री अरुण डनायक जी के जीवन के श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से जुड़े अविस्मरणीय एवं प्रेरक संस्मरण/ प्रसंग “ जीवन यात्रा -पूज्य बाबूजी को उनके 93 वें जन्म दिन पर परिवार के श्रद्धा सुमन”)
☆ जीवन यात्रा #80 – 2 –पूज्य बाबूजी को उनके 93 वें जन्म दिन पर परिवार के श्रद्धा सुमन ☆
गतांक से आगे
जीएम की विशेष रेलगाडी, आउटर सिगनल को पार करने से पहले ही स्टेशन की ओर पीछे आ रही थी, मध्य रेल के सर्वोच्च अधिकारी का इस तरह वापस आना किसी आसन्न खतरे का सूचक ! बाबूजी ने, जिन्हें स्वयं को संतुलित करने में देर नहीं लगती थी, अपने माथे पर अचानक आ गई पसीने की बूंदों को पोंछा, एक गिलास पानी पिया, और पूरी मुस्तैदी के साथ महाप्रबंधक का स्वागत करने प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हो गए I महाप्रबंधक का कोच स्टेशन के मुख्य द्वार के सामने रूका और अधिकारियों का जत्था स्टेशन की ओर बढ़ा। बाबूजी और उनके अधीनस्थों ने अभिवादन किया तभी महाप्रबंधक की कड़क आवाज गूंजी ‘Who is Master of this Station ?’ बाबूजी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ जवाब दिया ‘महोदय मैं’ । और इसके साथ ही स्टेशन के सूक्ष्म निरीक्षण का कार्य प्रारम्भ हो गया । महाप्रबंधक विभिन्न रिकार्ड मांगते और स्टेशन पोर्टर, अविलम्ब उन्हें प्रस्तुत कर देते । महाप्रबंधक की पैनी निगाहें रिकार्ड को देखती और किसी अन्य पुस्तक की फरमाइश होते देर न लगती । उन्होंने इसी दौरान स्टेशन पोर्टर से रेल संरक्षा के विषय में कुछ प्रश्न पूछे, उत्तर से वे संतुष्ट हुए और अचानक चमचमाती हुई ब्रास मेटल की टिकिट खिड़की, उद्घोषणा करने वाले पीतल के घंटे और स्वच्छ कक्ष को देखकर सम्बंधित सफाई कर्मचारी को बुलाने का आदेश दिया । सामने खड़े मुन्ना लाल ने बाबूजी का इशारा समझा और महाप्रबंधक के चरणों में अपना शीश नवा दिया । महाप्रबंधक ने मुन्ना लाल से पूछा कि ‘रोज इतने समय तक नौकरी पर उपस्थित रहते हो ।’ मुन्ना लाल ने भी त्वरित जवाब दिया ‘नहीं साहब, आज आपका दौरा था तो बड़े बाबू ने हम सभी को स्टेशन में दिन भर रहने का आदेश दिया था ।’ ‘तो फिर तुम लोगों को ओव्हर टाइम का पैसा मिलेगा ?’ महाप्रबंधक ने जब यह प्रश्न दागा तो सामूहिक उत्तर मिला ‘हम लोग आपके स्वागत और दर्शन के लिए ड्यूटी पर हैं तो भला ओव्हर टाइम क्यों मांगेंगे ।’ यह सब वार्तालाप महाप्रबंधक को प्रसन्न व प्रभावित करने पर्याप्त था और उन्होंने स्थल पर ही, मुन्नालाल व स्टेशन पोर्टर को पचास-पचास रुपये और बाबूजी व उनकी टीम को सात सौ रुपये नगद पुरस्कार की घोषणा तत्काल कर दी । शाम को अपनी ड्यूटी से निवृत होकर बाबूजी माँ और मैं, अनेक स्टेशन कर्मियों के साथ जागेश्वरनाथ के दर्शन करने गए । शास्त्रीजी ने इस यश को भोलेनाथ का आशीर्वाद एवं चमत्कार बताते हुए बाबूजी के गले ईश्वर को अर्पित पुष्पमाला पहना दी। दूसरे दिन स्टेशन स्टाफ का भंडारा ‘बड़ी बाई’ की ओर से आयोजित हुआ और माँ ने सबको भरपूर खीर-पूड़ी स्वयं परोसकर खिलाई ।
इसके बाद तो अक्टूबर 1986 तक मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय से कोई न कोई अधिकारी बांदकपुर स्टेशन निरीक्षण करने आता और और बाबूजी प्रसंशा पत्र या नगद पुरस्कार से सम्मानित होते रहे। बाबूजी की कर्तव्यपरायणता ने हम सब के लिए आदर्श प्रस्तुत किया । आज भी हम भाई-बहनों और उनके पुत्र-पुत्री जब हतोत्साहित होते हैं, कर्तव्यपथ से विचलित होते हैं तो चितहरा से बांदकपुर तक की उनकी 39 वर्ष की कर्म प्रधान यात्रा के किस्से सुनकर परिवार के लोग उत्साह से भर उठते हैं, कर्म पथ पर चलने की प्रेरणा पाते हैं ।
मेरी आगामी पुस्तक घुमक्कड़ के अध्याय पन्ना और हटा की सुनहरी यादें का एक अंश
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39