श्री अरुण कुमार डनायक
(श्री अरुण कुमार डनायक जी महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है।आज प्रस्तुत है श्री अरुण डनायक जी के शिक्षक दिवस से सम्बंधित संस्मरण “शिक्षक दिवस एवं “स्मार्ट क्लास”)
☆ जीवन यात्रा #82 – शिक्षक दिवस एवं “स्मार्ट क्लास” ☆
विगत 5 सितम्बर को ही में हम सब ने शिक्षक दिवस मनाया। भारत के यशस्वी राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधा कृषणन (5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) का जन्म दिन था। वे शिक्षाविद थे और महात्मा गांधी के कहने पर भारतीय राजनीति में आए। सर्वपल्ली राधाकृष्णन की यह प्रतिभा थी कि अखिल भारतीय कांग्रेसजन भी यह चाहते थे कि उन्हे गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी संविधान सभा के सदस्य बनाये जायें। स्वतन्त्रता के बाद उन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक के समय कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किये गये। जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राधाकृष्णन के संभाषण एवं वक्तृत्व प्रतिभा का उपयोग 14 – 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके पश्चात ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे । उन्होंने महात्मा गांधी पर दो विषद ग्रंथों का सम्पादन किया गांधी अभिनंदन ग्रंथ (वर्ष 1939 ) और गांधी श्रद्धांजलि ग्रंथ (वर्ष 1955 )। उनके इन्हीं अनेक गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। पंडित नेहरू ने उनको मान सम्मान दिया, पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति निर्वाचित करवाने में अपने पद का या अंग्रेजी में कहें तो गुड आफिसेस का उपयोग किया। उन्हे श्रद्धापूर्वक नमन।
वर्ण व्यवस्था की माने तो हमारे परिवार का पेशा होना चाहिए था अध्ययन अध्यापन, पठन पाठन। पर विगत दस-बारह पीढ़ियों में हमारे परिवार का पेशा शिक्षण कार्य तो नहीं रहा। हमारे पुरखे जो गुजरात से पन्ना आए वे पहले तो सामाजिक व्यवस्था में निर्यायक या दंडनायक की भूमिका निभाते रहे और इसीलिए हमारा उपनाम डनायक हुआ। फिर तीन पीढ़ियों ने हीरा और अनाज विक्रय आदि का व्यवसाय किया और अब भूत-वर्तमान चार पीढ़िया नौकरी कर जीवन यापन कर रही हैं। उनमें से कुछ शिक्षक भी हैं ।
मेरी, माँ स्व श्रीमती कमला डनायक, विवाह के पूर्व जैन प्राथमिक शाला दमोह में पढ़ाती थी, बाबूजी के दो चचेरे भाई स्व श्री भगवान शंकर डनायक उनकी भार्या स्व श्रीमती तारा व श्री केशव राम एवं उनकी अर्धागनी श्रीमती उषा डनायक सेवानिवृति तक हमारे पैतृक नगर पन्ना में शिक्षक रहे। बाबूजी के एक अन्य चचेरे भाई श्री श्याम शंकर डनायक, हमारे परिवार में प्रथम स्नातकोत्तर तक शिक्षित, ने भी अपनी आजीविका की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में तो की पर बाद को वे रेलवे में नौकरी करने लगे । लेकिन सेवानिवृति के बाद कुछ साल तक वे सतना में अर्थ-शास्त्र पढ़ाते रहे । मेरी, एक बहन रीता पण्ड्या, केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका रही तो अनुज, अतुल कुमार डनायक भी उच्चतर माध्यमिक शाला में प्राचार्य बना और वर्तमान में राज्य शिक्षा केंद्र में संयुक्त निदेशक के रूप में शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपनी भूमिका निभा रहा है । मेरे एक चचेरे भी रवि शंकर केशव राम डनायक भी शिक्षक हैं। मेरी पुत्र वधू श्रुति सेलट डनायक ने पहले मुंबई और फिर अमेरिका और कनाडा में शिक्षक के दायित्व को सफलतापूर्वक निभाया है। मेरे चचेरी बहनें भावना मेहता (पुत्री श्री केशव राम डनायक ) व सोनाली ठाकर (आत्मजा स्व श्री भगवान शंकर डनायक ) भी शिक्षक हैं और भौतिक विज्ञान व गणित जैसे कठिन विषयों को पढ़ाने में पारंगत हैं।
इन्ही भाइयों और काका–काकी की प्रेरणा से मैं भी सेवानिवृति के बाद स्कूली शिक्षा से जुड़ा । और जन सहयोग, जिसका अधिकांश हिस्सा मेरे साथियों, स्टेट बैंक से सेवानिवृत अधिकारियों व अन्य सेवनिवृत मित्रों ने आर्थिक सहयोग के रूप में दिया था के द्वारा 27 विद्यालयों में स्मार्ट क्लास शुरू करवाने में सफलता पाई । कोरोना संक्रमण ने हमारे इस अभियान को अल्प विराम दिया है। आशा की किरणे धूमिल नहीं हुई हैं, कभी फिर यह सपना आकार लेगा। अमरकंटक के माँ सारदा कन्या विद्या पीठ की बैगा आदिवासी बालिकाओं को तो कभी कभार मैंने पढ़ाने का असफल प्रयत्न भी किया। जब इन बच्चियों को मैं पढ़ाता हूँ तो मुझे मेरी माँ की याद आती है। हम भाई बहनों ने अपने चरवाहे के पुत्र सबलू को शिक्षित करने की ठानी। एक सप्ताह तक प्रयास करने पर भी हम उसे अ लिखना भी नहीं सिखा सके। और तब मेरी माँ ने स्लैट पेंसिल उठाई और दो दिनों में उस अबोध आदिवासी बालक को ‘सबलू ‘ लिखना सिखा दिया।
तो आज शिक्षक दिवस पर मेरी प्रथम गुरु हमारी मां कमला डनायक , परमेश्वर रूपी गुरु पिता रेवाशांकर डनायक, परिवार के शिक्षक व्यवसाय से जुड़े काकाजी, काकी, को सादर नमन। मेरे सभी शिक्षकों , परिवार के शिक्षक व्यवसाय से जुड़े, भाइयों और बहनों जिनका उल्लेख मैंने ऊपर किया है, 27 विद्यालयों के शिक्षकों जहां जन सहयोग से स्मार्ट क्लास शुरू की गई, मेरे शिक्षक मित्र डाक्टर मनीष दुबे, स्मार्ट क्लास के प्रणेता दिव्य दम्पत्ति ( दिव्य प्रकाश और मीनाक्षी सिंह ) तथा इन शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों को शुभकामनाएं।
© श्री अरुण कुमार डनायक
42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39