डॉ. शिव कुमार सिंह ठाकुर
☆ जीवन यात्रा ☆ एक चंदन चरित्र डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆
आज जबलपुर की साहित्यिक प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि जिस अधित्यका पर जा पहुंची है, उसकी चढ़ाई का सूत्रपात करने में डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ का यशस्वी योगदान है।
डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
उन्होंने हिंदी के नव लेखकों को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने का कार्य पत्रकारिता के माध्यम से तो किया ही साथ ही काव्य की कुंज गली से बाहर निकल निबंध, नाटक, उपन्यास, आलोचना, समालोचना आदि के विभिन्न क्षेत्रों में नव साहित्य साधकों को आगे बढ़ाने का स्तुत्य प्रयास भी किया है।
जबलपुर की हिंदी पत्रकारिता उनके व्यक्तिगत प्रयत्न एवं प्रोत्साहन की हमेशा ऋणी रहेगी।
आज वार्धक्य की विस्मित रेखाओं से जब वह जबलपुर का हिंदी समाज देखते हैं तब उन्हें आत्मिक संतोष अवश्य होता है कि उन्होंने सांस्कृतिक पथ प्रदर्शक का कार्य बहुत ईमानदारी से किया।
इक चंदन चरित्र डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी से मेरा परिचय 1990 के पूर्व हुआ जब मैं छायावादोत्तर काल के महाकवि श्री रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ के खंडकाव्य अपराधिता पर लघु शोध प्रबंध लिख रहा था और शोध की प्रक्रिया और प्रविधि को ठीक तरह से जानने हेतु मुझे अंचल जी ने सुमित्र जी के पास भेजा।
1995, 96 से यह परिचय आत्मीयता में बदल गया क्योंकि मैं नवभारत के संपादकीय विभाग में कार्य करने लगा और वहां डॉ. सुमित्र जी का आना अक्सर होता था, वहीं डॉ. तिवारी के हिन्दी की अभिवृद्धि को संजीवित और प्रसृत करने के वाक्य मेरे करण पटल पर आशीर्वाद स्वरुप सुनाई देते थे। साथ ही उनकी पुत्रियों डॉ. भावना जी एवं डॉ. कामना जी, बेटे डॉ. हर्ष तिवारी जी के व्यक्तित्व व्यवहार से भी परिचित होता गया।
जानकी रमण कॉलेज की एक संगोष्ठी से लौटते समय आदरणीय डॉ. गायत्री तिवारी जी एवं सुमित्र जी ने मुझे सेवा का अवसर दिया और वह मेरी कार में बैठकर कोतवाली तक आए। ममतामयी श्रीमती तिवारी का वह आंचलिक वार्तालाप और संवाद आज भी मुझे याद आता है।
1996-97 में क्राईस्ट-चर्च बॉयज़ सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हिंदी व्याख्याता नियुक्त होने पर हमारी सीनियर श्रीमती निर्मला तिवारी जी ने राजू भैया के प्रशंसनीय कार्यों को महत्त्व देते पुनः उनके साथ साहित्यिक परिचय कराया।
मुझे कोतवाली के उस बाडे में बैठाकर कुछ सत्संग-सानिध्य का समय देकर साहित्यिक प्रेरणा के महापात्र बने हैं डॉ. तिवारी !
मेरे स्कूली छात्रों ने जब जबलपुर के पत्रकारों-साहित्यकारों पर शोध आलेख लिखना शुरू किया तब डॉ. सुमित्र ने मेरे लघु प्रयास को महत्व देते हुए जबलपुर के अनेक साहित्यकारों से परिचय कराया, मार्गदर्शन दिया और मेरा मनोबल बढ़ाया।
हाल ही में उनकी जिजीविषा सपृक्त लेखन शक्ति को अभिव्यक्त करने वाली दो पुस्तकें, शब्द अब नहीं रहे शब्द और आदमी तोता नहीं का विमोचन हुआ है, मेरी हृदय से कामना है कि वे हमेशा लिखते रहें क्योंकि, लेखन ही उनके जीवन का धर्म-कर्म और अध्यात्म है। वही उन्हें जिंदा रखने वाली, प्राणवायु है।
डॉ. सुमित्र कोरे कवि, पत्रकार मौजी जीव नहीं बल्कि समाज सेवा के व्यावहारिक पहलुओं को संस्थापित, शिक्षित करने वाले ऐसे लेखक हैं जिनकी कीर्ति वर्धनी लेखनी समाज को हमेशा उत्प्रेरित और प्रोत्साहित करती रहेगी।
सादर
© डॉ. शिव कुमार सिंह ठाकुर
व्याख्याता, हिंदी
क्राईस्ट चर्च बॉयज़ सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈