सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -3 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

मेरा कॉलेज में जाना मेरे लिए एक उपहार ही था| मैं अकेली कॉलेज नहीं जा सकती थी| एक सहेली साथ हो, तो ही रोज कॉलेज जा सकती थी| समझ लीजिये कोई सहेली नहीं आयी, तो राह देखने के अलावा मैं कुछ भी नहीं  कर सकती थी| मेरे पापा ने मेरी तकलीफ जान ली| मुझे देर होती है, यह ध्यान में आने के बाद हमारी प्यारी लूना से कॉलेज तक छोडने को आते थे| पापा मुझे क्लासरूम तक छोडकर जा सकते थे, पर मुझे देखते ही कॉलेज की कई सी भी एक सहेली, चाहे वह पहचान वाली हो या ना हो, मुझे हाथ देने के लिए तैयार रहती  थी| सभी मेरी सहेलियाँ बन गयी थी|

कॉलेज में मेरे पापा का हाथ मुझ पर था| सभी लोग सर की लडकी, समझकर ही पहचानते थे| फिर भी कॉलेज में आने के बाद सभी नयी सहेलियाॅं, नये अध्यापक, माहौल भी नया था| शुरू शुरू में, मैं थोडा थोडा घबराती थी| थोडे दिन के बाद मैंने ॲडजस्ट किया| अध्यापक जो बोलते है, सिखाते है, सभी ध्यान से सुनती थी| अध्यापक जैसे कहते है, वैसे करने का मैंने तय किया था|

बारहवी बोर्ड की परीक्षा में थोडा टेन्शन तो था ही| रायटर की मदद लेना, यह तो पक्का था| मेरे लिए एक क्लासरूम खाली रखा था| मैं ओर मेरी रायटर एक डेस्क पर और सुपरवायझर दुसरी डेस्क पर बैठते थे| उन्होंने अपना काम नेकी से निभाया था| रायटर के पास कोई पुस्तक, कागज नहीं है ना, यह जान लिया था| उस वक्त बहुत टेन्शन होती थी| फिर भी मेरी पढाई की तैयारी अच्छी तरह से हुई थी| एक नया अनुभव मुझे मिला| मुझे बारहवी आर्ट्स में ६१% गुण मिले थे|

B.A. का पहला साल अच्छी तरह से चला| लेकिन द्वितीय वर्ष में, मेरी दोनों बहनों की शादी हुई, उस वक्त मुझे कोई भी पढकर नहीं सिखाता था| परिणाम स्वरूप मुझे A.T.K.T. मिली| मेरा इंग्लिश विषय रह गया| मुझे बहुत बुरा लगा| फिर पापा ने मुझे समझाया, आधार दिया| अरे तुम इतनी चिंता क्यों करती हो? ऑक्टोबर परीक्षा में पास होगी ही तू| पापा ने मुझसे अच्छी तरह से पढाई करवाई| फिर रायटर ढूंढना था | मेरे क्लास में ‘अमीना सारा खान’ नाम की लडकी थी| उसके हाथ को पोलिओ हुआ था| दोनों की वेदना, दुख एक ही था| मुझे रायटर चाहिये, यह समझने के बाद उसने अपनी छोटी बहन के साथ मेरी मुलाकात करवा दी| समीना बारहवी कक्षा में थी| रोज शाम को ६ बजे दोनों मिलकर प्रॅक्टीस के दौरान पुराने पेपर्स का उपयोग करके उसे छुडाते थे| समीना ने तो बहुतही अच्छा काम किया था| पेपर में एक भी स्पेलिंग मिस्टेक न करते हुए मैंने जैसे बताया वैसे ही लिखा, और आश्चर्य की बात है कि मुझे ८०% मार्क्स मिले गये|

पढाई के साथ-साथ मैं कॉलेज की वक्तृत्व स्पर्धा में और गॅदरिंग में भाग लेती थी| ११वी कक्षा में प्रतिमा ने मुझसे ‘सायोनारा’ डान्स की तैयारी करवा ली थी| डान्स की सभी ड्रेपरी, सफेद मॅक्सी,  ओढनी, पंखा सभी सांगली शहर से लाया था| सब सहेलियों ने मुझे माथे पर बिठाया और नाचने लगी| मेरा डान्स खत्म होने के बाद ‘यही है राइट चॉईस बेबी’ ऐसा ताल लगाया| नारे भी लगा रहे थे| यह सभी मुझे याद है| मेरी वक्तृत्व कला अच्छी होने के कारण सहेलिया मुझसे गाईडन्स लेती थी| मैंने भी मुझे जो-जो आता है, सभी खुले मन से सिखाया| हम सब में मित्रतापूर्ण स्वस्थ प्रतियोगिता थी|

मुझे कॉलेज की आदत हो गयी थी| बहुत सहेलियां मिल गई थी| अध्यापकों की पहचान हो गई थी| किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पडा| मैंने भी अपनी तरफ से सबको संभालकर रखा|

 

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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