सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -4 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

पाठशाला से ही मुझे बहुत स्पर्धाओं में पुरस्कार मिलते थे| सबसे अधिक वक्तृत्व स्पर्धा में मिलता था| शुरू-शुरू में हुई वक्तृत्व स्पर्धा में पाठशाला का एक-एक किस्सा मुझे याद है, ध्यान में है| कर्मवीर भाऊराव पाटील इन पर मैने भाषण किया था| मेंरा नंबर भी आया था, कौंन सा था मालूम नही| पुरस्कार देने का कार्यक्रम शुरू होने पर मेंरा नाम पुकारा गया, हम सब ग्राउंड पर बैठे थे| मै खडी हो गयी| मैं सहेलीके के साथ स्टेज पर जाने वाली थी, तो प्रमुख अतिथी स्टेज से नीचे उतरे| मेंरी पीठ थपथपाकर मुझे पुरस्कार दिया| इतने बडे आदमी होकर मेंरे लिये नीचे उतरे, कितने महान आदमी थे, किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं था| यह सब मुझे अभी भी याद है|

ऐसी ही कॉलेज की एक स्मृति है| गॅदरिंग में मेंरा नृत्य करना तय हो गया| में जब F.Y. में थी उस वक्त पुरस्कार देने के समारंभ में माननीय शिवाजीराव भोसले सरजी को कॉलेज ने बुलाया था| उस समारंभ में तीन-चार पुरस्कार मुझे भी मिले थे| मेंरा तय किया हुआ वक्तृत्व, कथाकथन, अंताक्षरी स्पर्धा चलता था| हमारे ग्रुप की प्रमुख मै ही थी| प्रश्नमंजुषा में भी मुझे पुरस्कार मिला था| पुरस्कार लेने के लिए मैं स्टेज पर दो चार बार जाकर पुरस्कार लेकर आई थी, बहुत खुशी से, आनंद से| कितने पुरस्कार लिये है तुमने? मुझे प्यार से कहा| आज भी मुझे उनकी सुंदर आवाज, उन के प्यारे बोल, मुझे दिखाई नही देते, फिर भी मुझे समझ में आया था| उनकी याद से मेंरा दिल अभी भी भर गया है, प्यार की आँखो से| श्री भोसले सरजी ने उनके आधे भाषण में मेरे कृत्य का ही वर्णन किया| इतना प्यार उमड़ आ रहा था कि उन्होंने मुझ पर छोटी सी कविता भी पेश किया| मुझे अभी कुछ याद नहीं, फिर भी उसका अर्थ समझ गया| भगवान मुझे कहते है, तुम्हारी बड़ी-बड़ी सुंदर आँखें मेंरे पास है| फिर भी मेंरा ध्यान तुम्हारे कर्तव्य की ओर है| यह बडा ‘आशयधन’  मेंरी हृदय में अभी भी जागृत है| उसका अंतर्मुख करनेवाला अर्थ, भाव-भावना जिंदगी में मैं कभी भी नही भूलूंगी|

२००७ साल के एप्रिल में, ‘रंगशारदा’ मिरज में मुंबई के क्रियाशील लोगों ने योगा शिविर का आयोजन किया था| उस शिविर में मैंने भी भाग लिया था| शिविर के आखरी दिन बातो-बातो में मैंने कह दिया की, मैं नृत्य सिखाती हूँ| उन सब लोगों को आश्चर्य होने लगा| ‘विशारद’ परीक्षा भी मैं देने वाली हूँ | जुलै में मुझे फोन आया| गुरुपौर्णिमा के दिन उन्होंने पूछा, मुंबई में एक कार्यक्रम में नृत्य करोगी क्या? आने-जाने का खर्चा हम करेंगे| पापा ने हाँ कह दिया| मेंरे मन में डर था, मुंबई जैसे बडे शहर में मेंरा कैसा होगा, यह डर था| मुझे मेंरा ही अंदाजा नही था, लोगों ने मुझे माथे पर चढा दिया| गाना पूरा होने तक नाचना,  हाथों से तालियाँ  बजाना चलता ही रहा था| मेरा मेकअप, मेरा आत्मनिर्भर होना, आत्मविश्वास इतना गाढा था कि, लोगों को मैं अंध हूँ, इस बात का विश्वास ही नहीं होता था| यह तो भगवान की ही कृपा से हुआ था| सभी स्त्रियों ने मेंरे हाथ हाथ में लेकर, मेंरे चेहरे पर, गालों को हाथ लगाकर, प्यार ही प्यार से आँखों को भी हात लगा कर सच का पता लगाया की सच में मैं अंधी हूँ या नही? मुंबई को भी मैंने मिरज जैंसे छोटे शहर की लडकी ने जगा दिया| मैंने मुंबई के लोगों को जीत लिया था| अनेक संस्थाऔं से पुरस्कार मिलते ही रहे, मिलते ही रहे| मुंबई के लोगों के दिल को मैंने जीत लिया था| यह मेरी लडाई मेरे जीने की आशा, प्रेरणा है|

 

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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