सुश्री शिल्पा मैंदर्गी
(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)
☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग -7 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆
(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)
(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )
सुबह सुबह जल्दी, सूरज निकलने से पहले एक कली धीरे-धीरे खिल गई। आपकी प्रस्तुति कह गई। रात कब की चली गई है। जल्दी-जल्दी सुबह होने लगी। याने मेरे मन के नृत्य सीखने के विचारों का नया जन्म हुआ। इस कली के हलके से हवा में खिलने लगे, धनश्री दीदी के विचारों जैसे ।
सच तो यह है कि भरतनाट्यम नृत्यप्रकार सीखना सिर्फ और सिर्फ आँखो से देख कर सीखना यही कला है। इसलिये मुझे और दीदी को बहुत परेशानियों का सामना करना पडा। फिर भी दीदी ने मेरे मन के तार जगाने शुरू किए। हम दोनों के ध्यान में एक बात आ गई, शरीर एक केवल माध्यम हैं, आकृति है। शरीर के पीछे याने आंतरिक शक्ति के आधार से, हम बहुत कुछ सीख सकते है। दीदी के बाद मैंने स्पर्श, बुद्धि, और मन की आंतरिक प्रेरणा, प्रेमभाव के माध्यम से नृत्य सीखना शुरू कर दिया। सीखते समय हस्तमुद्रा के लिये हमारे सुर कैसे मिल गये पता भी नही चला।
नृत्य सीखने के अनेक तरीके होते है। उसमे अनेक कठिनाइयाँ और संयोजन रहते हैं, जैसे कि दायाँ हाथ माथे पर रहता है तब बायाँ पैर लंबा करना, बयान हाथ कमर पर होता है तो, दायें पैर का मण्डल करके भ्रमरी लेते वक्त दायाँ हाथ माथे पर रखकर बयान हाथ घुमाकर बैन ओर से आगे बढ़न और गोल-गोल घूमना। गाने के अर्थ के अनुरूप चेहरे के हाव-भाव होने चाहिये। ऐसे अनेक कठिनाइयों का सामना कैसे करना चाहिए यह सब दीदी ने बडे कौशल्य के साथ सिखाया है। सच में अंध व्यक्ति के सामने रखा हुआ पानी का लोटा लेलो कहने को दूसरों का मन हिचकताहै, फिर भी इधर तो अच्छा नृत्य सिखाना है।
नृत्य की शिक्षा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे अनेक कठीनाईयोंका सामना करना पडता है। आठ-नौ बरस सीखने के बाद अभिनय सीखने का वक्त आ गया। उधर भी दीदी ने अपने बुद्धिकौशल्य से छोटे बच्चों को जैसे कहानियाँ सुनाते है, उनके मन में भाव पैदा करते है और उसका इस्तेमाल करते है, वैसा ही सिखाया।
मेरी सब परेशानियों मे बहुत बडी कठिनाई थी, मेरी आवाज की। नृत्य में घूमकर मुझे लोगों के सामने आने के लिए मेरा चेहरा लोगों के सामने हैं या नहीं, सामनेवाले देख सकते है या नहीं, यह मुझे समझ में नही आता था। फिर भी दीदी ने इन कठिनाइयों का सामना भी आसानी से किया। आवाज की दिशा हमेशा मेरे सामने ही रहना चाहिए, उसके आधार से फिर दो बार घुमकर सामने ही आती थी।
दीदी के कठिन परिश्रम, अच्छे मार्गदर्शन, मेरे मेहनत रियाज और साधना का मिलाप होने के बाद मैं गांधर्व महाविद्यालय की ‘नृत्य विशारद’ पदवी, ‘कलावाहिनी’ का ५ साल का कोर्स, टिळक महाराष्ट्र विद्यापीठ की नृत्य की एम.ए. की पदवी सफलता से प्राप्त की। जिसकी वजह से मैं विविध क्षेत्र में, मेरे अकेली का स्टेज प्रोग्राम कर सकती हूँ। ऐसे मेरी यश और कुशलता बहुत वृत्तपत्र और दूरदर्शन तथा अन्य प्रसार माध्यमों ने सविस्तार प्रस्तुत किए हैं।
प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे
मो ७०२८०२००३१
संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी, दूरभाष ०२३३ २२२५२७५