हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 4 ☆ सहारा ☆ – श्री प्रयास जोशी
श्री प्रयास जोशी
(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं। आपको वरिष्ठ साहित्यकार के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है।
ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग करेंगे । श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं। हमें प्रसन्नता है कि श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा से जुडी अपनी कवितायेँ हमें, हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता “ सहारा ”।
☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 4 – सहारा ☆
ऊबड़-खाबड़,दलदली खाइ-गड्डों
और धसकती कगारों पर
लाठियों के सहारे/चलते हुये हमें
अकस्मात ऐसा लगा कि जैसे यह
लाठिया न होकर,
पत्नियों के हाथ हों
जो, फिसलन से सचेत करते हुये
कह रहे हों हम से–पैर जमा कर
संभल कर चलो …
और जब भी भटकती हुई,समय की
भूख प्यास हमारे पास आई..
नर्मदा के सुंदर,रेतीले किनारों की
छाया में रोक कर हमें/ घर के झोलों से
निकाल कर खिला रहे हों
गुड़ के खुरमें,मटरीॆ/कई तरह की
साग, पूड़ी-पराठे, मूंगफली, चने,खजूर
बिस्कुट,सूखे-गीले फल…
और यादों से छूटा और भी बहुत कुछ
—हंसी मजाक के स्वाद को आगे बढा़ती
चलती शीतल हवा, पोंछते पसीना
कह रहे हो हम से कि अगर ऐसे ही
चलते रहे तो कब पहुंचोगे
गरूरा घाट ?
तीन किलो मीटर का भी नहीं निकलेगा
ऐवरेज……
(उन हाथों को नमन, जो साथ न चलते हुये भी लाठी की तरह साथ रहे और हमारी नर्मदा यात्रा को पार लगाया)
© श्री प्रयास जोशी
भोपाल, मध्य प्रदेश