हिन्दी साहित्य – नवरात्रि विशेष – कविता/गीत ☆ पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की नवरात्रि पर विशेष कविता/गीत – पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।)
☆ पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे ☆
नव रातें की जोत जगी है घर-घर बोए जवारे,
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
प्रथम पूज्य शैलपुत्री श्वेत वर्ण है धारे,
मधुर कलश हाथ लिए हैं सबकी ओर निहारे ।
पग पग धीरे चली भवानी गली-गली उजियारे।
द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी सबकी विपदा हारे,
ब्रह्म सनातन धीरज धरनी धर्म ध्वजा फहराए।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
तृतीय देखो चंद्रघंटा मस्तक चंद्र विराजे,
शिव दूती बनी भवानी दुर्गा रूप सवारे।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
चतुर्थ माता कुष्मांडे हैं साग नाम धराए,
जग की रक्षा करने को फिर बलि बलि भोग लगाएं।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
पंचम देवी स्कंध माता श्याम कार्तिकेय की धाये,
दानव दल को मार भगाए माता का नाम उजारे।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
षष्ठी कात्यानी भवानी शक्ति रूप निखारे,
जब जब विपदा जग में पड़ी सब को पार उतारें।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
सप्तम देखो कालरात्रि बन दुष्टन को दे संहारे,
लंबी लंबी जीव्हा निकाल रक्त बीज को मारे।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
अष्टम महागौरी का रूप मनोहर सुंदर रूप संवारे,
पूरन सबकी करें आराधना दुर्गा यही कहाए।
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
नवम सिद्धिदात्री हैं भरे भंडार हमारे,
आराधन कर नवदुर्गा का मन वांछित फल पाए।
नव रातें की जोत जगी है घर-घर बोए जवारे,
पग पग धीरे चली भवानी गली गली उजियारे।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश