श्री रमेश चंद्र शर्मा
(“परसाई स्मृति” के लिए अपने विचार ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा करने के लिए उज्जैन के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चन्द्र शर्मा जी का हृदय से आभार।)
परसाई स्मृति – स्वतंत्र विचार
परसाई जी की तारीफ करना अलग बात है,उनके नक्शे क़दम पर चल कर लिखना अलग बात है। उनसे प्रेरित होकर लिख भी दिया तो मीडिया की तो औक़ात नही की छापने की हिम्मत कर ले।
वह दौर ही अलग था जब परसाईजी जैसे लिखने वाले थे, उनके लिखे को पसंद करने वाले संपादक थे औऱ सम्पादक को सम्पादन की आज़ादी देने वाले मालिक थे।
अब तो अखबारों की नीति मुताबिक लिखने वाले लेखक है। मालिकों की हितकारी नीतियों के चौकीदार सम्पादक है ,सम्पादक के माथे पर मालिक है और मालिक के माथे पर लट्ठ लिए सरकार है। ऐसे में परसाई जैसा लेखक कैसे पैदा होगा।
परसाई जी आज के दौर में होते तो छपने को तरस जाते, कौन अखबार उनके व्यग्य छाप कर आफत मोल लेता। अच्छा हुआ परसाई उस दौर में लिख-छप गए।
श्री रमेश चन्द्र शर्मा, उज्जैन
(उपरोक्त विचार श्री रमेश चन्द्र शर्मा जी के व्यक्तिगत विचार हैं। )