श्री हिमांशु राय 

(परसाई स्मृति” के लिए अपने संस्मरण /आलेख ई-अभिव्यक्ति  के पाठकों से साझा करने के लिए  संस्कारधानी  जबलपुर के वरिष्ठ  नाट्यकर्मी एवं साहित्यकार श्री हिमांशु राय जी   का हृदय से आभार। आप  इप्टवार्ता के संपादक एवं  विवेचना थियेटर ग्रुप के सचिव भी हैं। )

 

✍  परसाई जी – एक आम आदमी और खास लेखक ✍

 

अगस्त का माह में परसाई जी का जन्मदिन भी है और पुण्यतिथि भी है। अब यूं लगता है कि देश के बहुत से शहरों में परसाई जी के जन्मदिवस पर कार्यक्रम आयोजित होते हैंं। उनकी रचनाओं का पाठ होता है। उनकी रचनाओं पर विचार विमर्श होता है। व्यंग्य विधा पर चर्चा होती है। परसाई जी की बहुत सी रचनाएं ऐसी हैं जो कालजयी हैं। जिनका रचनाकाल बहुत पहले का है परंतु यूं लगता है जैसे आज लिखी गई हैं। इतना साम्य होता है कि लगता है आज कल मंे घटी घटनाओं को देखकर परसाई जी ने इसे लिखा है। यह परसाई जी की दूरदृष्टि थी या संयोग।

यह संयोग कतई नहीं है। यह परसाई जी के द्वारा किए गए विशद अध्ययन और उनके अनुभवों का कमाल है जिसके कारण उनके लिए राजनैतिक विषयों पर पूरी तीव्रता से लिखना संभव हुआ है। परसाई जी कमरे में बंद लेखक नहीं थे। वे शहर में निरंतर मेलजोल रखते थे। शहर के आम आदमी से वे सीधे जुड़े थे। बल्कि ये कहा जाए तो ज्यादा ठीक होगा कि वो एक आम आदमी और खास लेखक थे। इसीलिए उन्हें समाज की विसंगतियों और पीड़ा को समझना मुश्किल नहीं था। वो समाज में हर छोटे बड़े के पाखंड को पकड़ते थे और निर्ममता से उधेड़ते थे। इसीलिए परसाई परसाई थे।

परसाई जी ने अपने जीवन की शुरूआत में ही बहुत कठिन दिन देखे। विपन्नता को भोगा। छोटी सी उम्र में नौकरी की। दर्द से चीखती मां की मौत देखी। परसाई ने लिखा कि मां दर्द से चीखती रहती थीं और हम बच्चे गाते जाते थे ’ओम जय जगदीश हरे, भक्तजनों के संकट पल में दूर करे’। पर मैंने देख लिया कि मां के कष्ट दूर करने के लिए कोई जगदीश नहीं रहा हैं। मां चली गई।

परसाई जी ने बहुत लोगों के शब्द चित्र लिखे हैं। वो लोग जबलपुर शहर के बड़े लोग नहीं थे। पर अपने तरीके के अलग लोग थे। परसाई जी उन पर लिख सके क्योंकि उन्हंे परसाई जी ने गहराई से पढ़ा था। ’मनीषी जी’ के बारे में परसाई जी ने लिखा है कि वो बांसुरी बजाते थे। जब वो भूखे होते थे तो अपने कमरे में बंद बिस्तर पर बैठे हुए बांसुरी बजाते थे। उनके प्रेमी समझ जाते थे और उनकी व्यवस्था करते थे। मनीषी जी जैसे अनेकों चरित्रों पर लिख कर परसाई जी ने उन्हें न केवल अमर कर दिया है वरन् आम आदमियों की विशिष्टताओं को भी उजागर किया है। ऐसे लोग भी हुए हैं, ऐसे लोग भी होते हैं ये परसाई जी के शब्दचित्रों को पढ़ने से ही मालूम होगा। उनको लिखने के लिए परसाई जी ने दिमाग से ज्यादा दिल से काम लिया है इसीलिए इन शब्दचित्रों के नायकों को परसाई जी ने बेहद मानवीयता के साथ चित्रित किया है।

’जाने पहचाने लोग’ में परसाई जी ने अपने शिक्षक चड्डा जी को याद किया है। क्या ऐसा शिक्षक होता है ? चड्डा जी ने परसाई को बचपन में दुनिया का साहित्य, इतिहास सब पढ़वा दिया। नितांत बचपन में की गई अपनी जंगल की नौकरी ने उनको उस उम्र में ही आदमी के चरित्र को पढ़ना सिखा दिया। उनने अपनी बुआ के बारे में लिखा है कि खुद पास में कुछ न होने के बावजूद वो कभी दुखी न होती थीं। सबके लिए भोजन की व्यवस्था करती थीं। उनने एक मुस्लिम बच्चे को घर में रखकर पढाया था। ये सब घटनाएं परसाई जी को निखारतीं रहीं।

घटनाएं सबके जीवन में घटती हैं। सवाल ये है कि हम उनसे क्या सीखते हैंं। घटनाएं हमारी पाठशाला हैं। हम उस पाठशाला में अच्छे से पढ़े तभी जीवन के विश्वविद्यालय से डिग्री ले पायेंगे। यदि आप कुछ न पढ़ पा रहे हों तो परसाई जी के शब्द चित्र, गर्दिश के दिन और जाने पहचाने लोग पढ़ लें। आप शिक्षित हो जाएंगे। जीवन की पाठशाला में बहुत कुछ अनपढ़ा रह जाता है। आज के समय में रहन सहन खान पान बदल गया है। तो जरूरी है कि जीवन की पाठशाला में जिनने ध्यान से पढ़ाई की है उनके लिखे हुए को पढ़ लिया जाए। मैक्सिम गोर्की ने ’मेरे विश्वविद्यालय’ यूं ही नहीं लिखी है।

© हिमांशु राय

जबलपुर, मध्यप्रदेश

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डॉ भावना शुक्ल

बढ़िया

सटीक आलेख है, परसाई जी पर।
आभार हिमांशु जी।
– किसलय

Vijay Tiwari "Kislay"

सटीक आलेख है, परसाई जी पर।
आभार हिमांशु जी।
– किसलय