डॉ . प्रदीप शशांक
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा 16 वर्ष पूर्व लिखी गई लघुकथा “पितर चले गये ” आज भी सामयिक लगती है.)
☆ लघुकथा – पितर चले गये ☆
कौआ सुबह सुबह एक छत से दूसरी छत पर कांव कांव करता हुआ उड़ उड़ कर बैठ रहा था किंतु उसे आज कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा था ।
कल ही पितृ मोक्ष अमावस्या के साथ पितृ पक्ष समाप्त हो गए । इन पन्द्रह दिनों में कौओं को भरपेट हलुआ पूड़ी एवम तरह तरह के पकवान खाने को मिले थे । इसी आस में आज भी कौआ इस छत से उस छत पर भटक रहा था ।
थक हार कर वह एक छत की मुंडेर पर बैठ गया । उसे महसूस हो गया था कि पितर चले गए हैं ।अतः वह पुनः कचरे के ढेर में अपना भोजन तलाशने उड़ गया ।
© डॉ . प्रदीप शशांक
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002