हिन्दी साहित्य – पितृ पक्ष विशेष – कविता ☆ कौए -कुछ दोहे ☆ – डॉ. अंजना सिंह सेंगर
डॉ. अंजना सिंह सेंगर
(आज प्रस्तुत है डॉ. अंजना सिंह सेंगर जी द्वारा रचित पितृ पक्ष में कौओं का महत्वा बताते हुए कुछ दोहे. )
☆ कौए -कुछ दोहे ☆
रंग- रूप, आवाज़ से, हुए बहुत लाचार,
मित्रों से सच- सच कहे, कौओं का सरदार।
हम कौए काले सही, पर मानुस से नेक।
अपने स्वारथ के लिए, रहे न रोटी सेंक।
हम कौए खाते सदा, रोटी को मिल- बांट,
मानुस के गुण श्वान-से, जो देता है डांट।
आने के मेहमान का, काग देत संदेश,
ये जगजाहिर बात है, जाने भारत देश।
कागा बैठे शीश पे, कहे मनुज शुभ नाहिं,
यह फिजूल की बात है, व्यापी घर- घर माहिं।
पितर पक्ष में खोजते, हम कागों को लोग,
वे पुरखों के नाम पर, करते हैं अति ढोंग।
कौओं की संख्या घटी, ये चिंता की बात,
कौओं के सरदार को, नींद न आए रात।
नहीं मनुज को फिक्र है, हम कौओं की आज,
वह अपने में मस्त है, करता गंदे काज।
पशु- पक्षी से प्यार है, कहे मनुज चिल्लाय,
लेकिन खाना दे नहीं, पानी भी चित लाय।
सीता माँ के चरण में, मारा पुरखा चोंच,
बाण चला रघुवीर का, आँख गया वह खोंच।
काने कौए हो गए, तब से कहते लोग,
बुरे कर्म करिए नहीं, आगे खड़ा कुजोग।
© डॉ. अंजना सिंह सेंगर
जिलाधिकारी आवास, चर्च कंपाउंड, सिविल लाइंस, अलीगढ, उत्तर प्रदेश -202001
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