श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है श्री देवदत्त शर्मा जी की पुस्तक “रामकथा एवं तुलसी साहित्य” की पुस्तक समीक्षा।)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘रामकथा एवं तुलसी साहित्य’ – श्री देवदत्त शर्मा ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पुस्तक- रामकथा एवं तुलसी साहित्य
आलोचक- देवदत्त शर्मा
प्रकाशक- साहित्यागार, धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302006 मोबाइल नंबर 94689 43311
पृष्ठ संख्या- 176
मूल्य- ₹300
समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
☆ तुलसी साहित्य की बेहतरीन समालोचना की पुस्तक – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
आलोचना के लिए खुलापन चाहिए। यदि आप पूर्वाग्रह से ग्रसित हो तो आलोचना महत्वहीन हो जाती है। यदि आप पक्षपाती हो तो वह स्तुतिगान से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह जाती है। इसलिए आलोचक को पूर्वाग्रह रहित, निष्पक्ष और तटस्थ रहना जरूरी है।
इसी के साथ-साथ आलोचक को अध्ययन की दृष्टि से गंभीर व पठन की दृष्टि से धैर्यवान होना चाहिए। तभी वह गहन अध्ययन कर अपने निष्कर्ष के द्वारा बेहतरीन आलोचना प्रस्तुत कर सकता है।
इन दोनों ही दृष्टि से रामकथा एवं तुलसी साहित्य के रचनाकार यानी आलोचक की पृष्ठभूमि का अवलोकन करें तब हमें ज्ञात होता है कि आलोचक रचनाकार देवदत्त शर्मा के पिता श्री मिश्रीलाल शर्मा त्रिभंगी छंद के विशेषज्ञ रचनाकार थे। वे नित्य प्रति रामचरितमानस का पारायण करते थे। इस कारण उनके पुत्र को पौराणिक साहित्य और उसकी बारीकियों को जानने का, समझने का, परखने का, चिंतन-मनन करने का, लंबा व अनुभव सिद्धि कार्यानुभव रहा है। जिसकी छाप उनके अंतर्मन पर गहरी पड़ी है। वे स्वयं पौराणिक साहित्य के अध्ययेता, चिंतक व रचनाकार रहे हैं। इस कारण आप को इस साहित्य के चिंतन-मनन का लंबा अनुभव प्राप्त हुआ है।
देवदत्त शर्मा की लेखनी हमेशा इन्हीं विषयों पर अधिकार पूर्वक चलती रही है। आपने इस प्रसंग पर अनेकों आलेख, तार्किक रचनाएं एवं शोध आलेख लिखे हैं। इस अलौकिक अनुभव के कारण आप रामकथा एवं तुलसी साहित्य नामक आलोचक ग्रंथ का परिणयन कर पाए हैं।
प्रस्तुत आलोच्य ग्रंथ से तैतीस अध्यायों में विभक्त है। इसके अंतर्गत आलोचक ने रामकथा के प्रथम रचनाकार से लेकर रामराज्य की स्थापना से गोस्वामी तुलसीदास जी की विनोदप्रियता तक हर पहलू को छुआ है। रामकथा के हर पात्र, उसका स्वभाव, उसकी भावना, उसका त्याग, उसका बलिदान के साथ-साथ उसकी कर्तव्य परायणता का बारीकी से आलोचनात्मक मूल्यांकन किया है।
तुलसीदास जी की सबसे निंदक चौपाई- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी। की सबसे सुंदर व समकालीन परिस्थितियों में बहुत ही बेहतरीन समोलोचना प्रस्तुत की गई है। यदि आप रामचरितमानस, उसके समस्त पात्, उनकी स्थिति, भाव भंगिमा और मनोदशा को समझना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके बहुत काम की है।
आलोचक की श्रमसाध्य मेहनत, सूझबूझ, धैर्य और गंभीर अध्ययन को यह पुस्तक भारतीय ढंग से प्रस्तुत करती है। 176 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य ₹300 वाजिब है। साजसज्जा व आवरण पृष्ठ आकर्षक व त्रुटिरहित है। आशा है इस पुस्तक का साहित्यजगत में खुले दिल से स्वागत किया जाएगा।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈