श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “एक ज़िंदगी… एक स्क्रिप्ट भर” (कथा संग्रह) – लेखक : सुश्री उपासना ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

समीक्ष्य पुस्तक : एक ज़िंदगी… एक स्क्रिप्ट भर।

कथाकार : उपासना।

प्रकाशक :लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद।

पृष्ठ : 184

मूल्य : 250 रुपये (पेपरबैक)

☆ “जीवन और समाज के अंधेरे उजालों की कहानियां” – कमलेश भारतीय ☆

भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार व वनमाली विशिष्ट कथा सम्मान से सम्मानित युवा कथाकार उपासना का कथा संग्रह ‘एक ज़िंदगी… एक स्क्रिप्ट भर’ जीवन व समाज के अंधेरे वर्ष उजालों की कहानियां लिए हुए है। ‌ऐसा प्रसिद्ध कथाकार प्रियंवद का आंकलन है और उनकी नज़र में उपासना एकाग्रता, गंभीरता और निष्ठा के साथ कहानियां लिखने में विश्वास करती हैं । कथा संग्रह में आधा दर्जन कहानियां हैं और इनमें ‘कार्तिक का पहला फूल’ को छोड़कर बाकी पांच लम्बी कहानियां हैं, जिन्हें पढ़ते समय हम पुराने कस्बों और पुराने प्रेम के दिनों में सहज ही पहुंच जाते हैं । कथा संग्रह की शीर्षक कथा ‘एक ज़िंदगी.. एक स्क्रिप्ट भर’ एक ऐसी शांत, खामोश सी प्रेम कथा है पुराने समय की, जो कभी देवदास तो कभी किसी और नायक की दशा बयान करती है

‌गीता और शंकर का  किशोर प्रेम कितने शानदार ढंग से वयक्त किया है कि भुलाये नहीं भूलेगा! वह साइकिल पर बिठाना और बहुत धीमे से यह कहना कि हम तुम्हें प्यार करते हैं, सच में पुराने समय की ओर ले जाता है । फिर थोड़ा युवा होने पर अभिभावकों द्वारा घास और फूस को अलग रखने और गीता की शादी अनायक यानी अमरीश पुरी स्टाइल व्यक्ति से करने और ससुराल में सास व‌ ननद के तानों की शिकार गीता को अपना प्यार बहुत याद आता है और फिर अंत ऐसा कि गीता लौटती है अपने मायके और बस में शंकर मिल जाता है तब वह उतरते समय बहन को कहती है कि किसी से मत कहना कि शंकर हमको बस में मिला था! कितना कुछ कह जाता है यह वाक्य ! यह प्रेम स्क्रिप्ट बहुत खूबसूरत है। कथा संग्रह की सबसे छोटी कथा है ‘कार्तिक का पहला फूल’ ! ओझा जी सेवानिवृत्त हैं और फूल पौधों की निराई गुड़ाई कर अपना समय व्यतीत करते हैं। इसी में खुश रहते हैं और हर पौधे पर ध्यान देते हैं। अड़हुल पर पहला फूल आने वाला है और वे इंतज़ार में हैं लेकिन एक सुबह देखते हैं कि फूल तो तोड़ लिया गया है और पूछने पर पता चलता है कि बहू ने  एकादशी की पूजा के लिए तोड़ लिया है ! ओझा जी का मन रोने रोने को हो आता है । अड़हुल की वह सूनी डाल अब भी कार्तिक के झोंके से अब भी झूम रही थी ।

तीसरी कहानी ‘एमही सजनवा बिनु ए राम’ में सिलिंडर और रतनी दीदिया के मुख्य चरित्रों के माध्यम से ग्रामीण परिदृश्य में होने वाली छोटी से छोटी बातों को बहुत मन से लिखा गया है और कैसे दूसरों के घरों में आग लगाई जाती है, कैसे सिलिंडर द्वारा रतनी दीदिया को बर्फ खिला भर देने से बात फेल जाती है और किस प्रकार से आखिर कहानी रतनी दीदिया के जीवन के दुखांत तक ले जाने और व्यक्त करने में सफल हो जाती है, यह जादू उपासना की कलम में है ।

“नाथ बाबा की जय कहानी कैसे धीरे धीरे साम्प्रदायिक उन्माद की ओर बढ़ जाती है, यह भी बहुत ही सहजता से लिखी कहानी है और अपनी गुमटी को उन्मादियों द्वारा तोड़े जाने के बाद गुस्से में खुद ही अलगू मेहर तोड़ डालता है और उसकी पत्नी चुपचाप चूल्हे से उठता धुआं देखती रह जाती है!

‘टूटी परिधि का वृत्त’ और ‘अनभ्यास का नियम’ भी लम्बी कहानियां हैं लेकिन अपना जादू और आकर्षण बनाये रखती हैं। जो कार्य लम्बे समय तक किया या दोहराया नहीं जाता है, वह भूल जाता है। इसी को अनभ्यास का नियम कहते हैं! इस तरह नियम स्पष्ट कर कथाकार आगे बढ़ती है ।

भाषा बहुत ही मोहक है, जिसके कुछ उदाहरण ये हैं :

औरत की मांग में पीला सिंदूर था, मायका था, आदमी के मां बाप थे, गली कूचे, मोहल्ले थे, महिमामय सारा भारतवर्ष था और इस सबके बीच औरत का एकतरफा प्यार था!

…..

दुपट्टा फरफराता है… शंकर के हाथ पर…!

यह कोमल स्पर्श शंकर की उपलब्धि है। उन्होंने चा़द की ठंडाई को छू लिया है।

…..

प्रेम करने वाला कभी पछताने की स्थिति में रहता ही नहीं । प्रेम हमेशा हर हालत में पाता है । यह अलग बात है कि यह ‘पा लेना’ कभी समझ में आ जाता है और कभी नहीं आता!

…..

रतनी दीदिया सोचती थी कि हम चीज़ें नहीं यादें पहनते थे । हाथों में चूड़ियां नहीं, यादें खनकती थीं। बालों में रबर नहीं, याद बंधी थी! सीने पर दुपट्टा नहीं, याद फैली थी!

ऐसे अनके उदाहरण हैं। ‌उपासना की कहानियों में ताज़गी है, कहने में रवानगी है और पुराने दृश्यों को जीवंत कर देने की कला! संग्रह पठनीय है और सहेज कर रखने लायक ! लोकभारती प्रकाशन का साफ सुथरा प्रकाशन है यह कथा संग्रह!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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