हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆
श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆
पुस्तक : बीते जो पल, पिता के संग।
लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली।
मूल्य : 400 रुपये। पृष्ठ : 142
☆ “सुदर्शन रत्नाकर का संस्मरण संकलन- जीवन के बीते पलों और पिता की खूबसूरत यादें” – कमलेश भारतीय ☆
अभी दस नवम्बर को हरियाणा लेखक मंच के वार्षिक सम्मेलन में अनेक पुस्तकें मिलीं, कुछ पढ़ पाऊं, कुछ लिख पाऊं उन पर, यही इच्छा लिए हुए! हर लेखक दूसरे लेखक को इसी उम्मीद से अपनी कृति उपहार में देता है कि वह संवेदनशील लेखक इसे पढ़ने का समय निकाल कर दो शब्द लिखेगा, कई बार मैं सुपात्र होता हूं, कई बार नहीं! यानी साफ बात सबकी किताबें पढ़ना किसी एक के बस की बात नहीं! सुदर्शन रत्नाकर के लिए मैं सुपात्र हूं क्योंकि धीरे धीरे इसे आज पढ़कर लिखने जा रहा हूं।
यह एक बेटी की यादें हैं अपने प्रिय नायक पिता के साथ! यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य भी है कि बेटियां पिता से तो बेटे मां से ज्यादा लगाव रखते हैं! कहां तक सच है, पता नहीं लेकिन सुदर्शन ने पिता चौ राजकृष्ण बजाज के साथ और पिता ने पुत्री सुदर्शन के साथ अथाह प्यार किया, संस्कार दिये, संस्कारित किया, बेटों से ज्यादा चाहा, दुलार दिया और बेटी की गलती पर भी दूसरों को समझाया, डांटा! हमेशा बेटी का पक्ष लिया! बेटी ने भी पिता को निराश नहीं किया, योग्य बनी और पिता का सिर ऊंचा किये रखा! कहां गुजरात मूल के लोग हरियाणा तक पहुच गये!
यही पल पल, बरसों की यादें हैं! मनाली, नैनीताल, बडखल झील के प्यारे प्यारे से संस्मरण हैं! चाहने वाला, सिर झुका कर प्यार करने वाला पति, प्यारे से बच्चे लेकिन जो शोख सी लड़की सुदर्शंन थी, वह साध्वी जैसे सफेद कपड़े पहनने लगी! जो शरारतें करती थी, भाइयों के साथ वह गंभीर लेखिका बन गयी! अनेक गुण पिता से लिए और आज भी उनके आदर्शों पर चल रही है सुदर्शन!
एक पिता के पत्र पुत्री के नाम में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बहुत कुछ दिया, जिस पर भारत एक खोज सीरियल बन गया! एक पुत्री की यादें पिता के साथ भी पढ़ी जा सकती है, निश्चित रूप से!
इस पुस्तक में विभाजन से जूझते पिता हैं और विभाजन के बाद कैसे अपने सघर्ष और जीवट से पिता ने परिवार का पालन पोषण किया, कैसे पैरों पर खड़ा किया सबको और संयुक्त परिवार आज भी आदर्श हैं, यह सीख मिलती है पर अब सिर्फ यादें ही यादें हैं और यादों में जीती एक बेटी!
कवर खूबसूरत है और पेपरबैक में होती तो बेहतर होता। सजिल्द का मूल्य चार सौ है, जो आम पाठक की जेब से अधिक है।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈