भारत में जल की समस्या एवं समाधान – श्री रमेश चन्द्र तिवारी
न्यायालय के आदेश के परिपालन में लिखी गई किताब – भारत में जल की समस्या एवं समाधान
लेखक – रमेश चंद्र तिवारी
मूल्य – २८० रु पृष्ठ २७४
शकुंतला प्रकाशन, २१७६, राइट टाउन , जबलपुर
टिप्पणीकार – इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव , मो ७०००३७५७९८ जबलपुर
सामान्यतः किताबें लेखक के मनोभावो की अभिव्यक्ति स्वरूप लिखी जाती हैं, जिन्हें वह सार्वजनिक करते हुये सहेजना चाहता है जिससे समाज उनसे लम्बे समय तक अनुप्राणित होता रह सके. पर्यावरण पर अनेक विद्वानो ने समय समय पर चिंता जताई है. मैंने भी मेरी किताब जल जंगल और जमीन भी इसी परिप्रेक्ष्य में लिखी थी. भारत में जल की समस्या एवं समाधान श्री रमेश चंद्र तिवारी की पुस्तक इस मामले में अनोखी है कि यह किताब माननीय उच्च न्यायालय के एक निर्णय के परिपालन में लिखी गई है.
पृष्ठभूमि यह है कि श्री रमेश चंद्र तिवारी वन विभाग में सेवारत थे, उनके सेवाकाल में उन्हें विभिन्न पदो पर अवसर मिले कि वे धरती के गिरते जल स्तर, पर्यावरण परिवर्तन से सुपरिचित होते रहे. सेवानिवृति के बाद उन्होने हाई कोर्ट में एड्वोकेट के रूप में कार्य शुरू किया, तथा अपनी पर्यावरण सजगता के चलते उन्होने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका क्र डब्लू पी ५१७८ वर्ष २००८ आर सी तिवारी विरुद्ध भारत सरकार व अन्य दायर की. याचिका में गिरते भू जल स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये वैधानिक आधार पर न्यायालय के समक्ष रखा गया. यहां यह लिखना प्रासंगिक है कि वर्तमान में सरकारो की जो स्थितियां हैं उनसे ऐसा लगने लगा है कि देश न्यायालय ही चला रहे हैं. लगभग हर छोटी बड़ी राष्ट्रीय समस्या से संबंधित जनहित याचिकायें या प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं. यह स्थिति जहां एक ओर जागरूखता का परिचय देती हैं वही सरकारो की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह भी खड़े करती है . यह स्वस्थ्य लोकतंत्र की दृष्टि से चिंतनीय कही जा सकती है. अस्तु, माननीय न्यायालय ने आर सी तिवारी जी की याचिका पर निर्णय देते हुये २८ जुलाई २०१५ को निर्देश दिये कि जल समस्या के समाधान हेतु शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजा जावे. और इस परिपालन में इस किताब की रचना श्री आर सी तिवारी द्वारा की गई है.
ब्रम्हाण्ड के अनेकानेक ग्रहो में से केवल पृथ्वी पर जीवन है, और जीवन के लिये जल, वायु, पर्यावरण के महत्व से सभि सुपरिचित हैं. जल का प्रबंधन केवल मनुष्य कर रहा है पर धरती के समस्त प्राणी, व वनस्पतियां भी जीवन के लिये जल पर निर्भर हैं. अतः भावी पीढ़ीयो के लिये जल के समुचित संरक्षण व उपयोग की मानवीय जबाबदारी कही ज्यादा है. जल संचय मानवीय विकास हेतु जरुरी है, इसलिये बांध बनाये जा रहे हैं. बड़े बांधो से जल संग्रहण में डूब क्षेत्र की समस्या के विकल्प के रूप में मैंने जल संग्रहण हेतु ऊंचे बांधो की अपेक्षा धरती पर नदियो की तलहटी में चम्मच की तरह के जल संग्रहण का सुझाव दिया है, जिसे व्यापक सराहना मिली, किन्तु मैदानी स्तर पर कोई अमल परिलक्षित नही हुआ है. आम नागरिक सुझाव ही तो दे सकते हैं, परिपालन सरकार के हाथ में है, अतः सरकार पर इन सुझावो के क्रियांवयन का दबाव बनाने के लिये समाज में जल चेतना का वातावरण बनाना आवश्यक है. भारत में जल की समस्या एवं समाधान जैसी किताबें और रमेश चंद्र तिवारी जैसे एक्टिविस्ट इस दिसा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं जिनकी सराहना जरूरी है. प्रस्तुत किताब में जल का महत्व, जल की उपलब्धता, वर्तमान जल समस्या, प्राचीन भारत की जल आपूर्ति व्यवस्थायें, तो वर्णित हैं ही, न्यायालय के आदेश के परिपालन में जल समस्या समाधान के उपाय व कार्यविधि, राष्ट्रीय जल नीति, तथा जल की उपलब्धता व आर्थिक विकास को जोरते आंकड़े भी प्रस्तु किये गये हैं, जिसके लिये सेंटर फार साइंस एण्ड इंवार्नमेंट की पुस्तक बूंदो की संस्कृति से सहयोग लिया गया है. श्री रमेश चंद्र तिवारी ने इस न्यायालयीन प्रकरण तथा फिर इस किताब के रूप में एक पर्यावरण प्रहरी की अपने हिस्से की सजग नागरिक की जबाबदारी निभाई है, जो सराहनीय है, पर देखना है कि जमीनी स्तर पर वास्तविलक बदलाव लाने में इस तरह के प्रयासो को कब सफलता मिलती है, जो ऐसे एक्टिविस्ट का वास्तविक उद्देश्य है.
टिप्पणीकार .. श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव “विनम्र”
ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८
बहुत उम्दा शुरुवात।बधार्ईयाँ। हमे इन मुद्दों को लेकर रैलियां भी निकालनी चाहिए। भारत ही नही, सारी पृथ्वी विनष्ट होने के करीब आती जा रही है जबकि इसकी और मानव की।व जीवन की उम्र कुछ तो बढाई ही जा सकती है।इस दिशा में पूरा दृष्टिकोण है मेरे पास। पर कौन सुने। संसाधन तो उनके।पास है जिन्हें दिखता नहीं। यह सब प्राथमिकता में होने चाहिए।