श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – बारिश
देखी तो होगी
तुमने बारिश,
सारा गर्द झाड़-पोंछकर
प्रकृति का
मूल शृंगार लौटाती;
उसे हरा बनाती,
बस कुछ इसी तरह है
मेरी आँख का पानी
और उसका बरसना,
सारा गर्द धोकर
अपनों के दिए व्रण सुखाकर;
फिर भर देता है
पुतलियों में अनंत स्वप्न,
स्वप्न देखतेे रहने की
अविराम अभिप्सा
और यथार्थ कर सकने की
अदम्य जिजीविषा..!
चौकन्ना
सीने की ठक-ठक
के बीच
कभी-कभार
मुझे सुनाई देती है
मृत्यु की भी
खट-खट,
ठक-ठक..
खट-खट..,
कान शायद अब
चौकन्ना हुए हैं
अन्यथा
ठक-ठक और
खट-खट तो
जन्म से ही
चल रही हैं साथ;
चल रही हैं अनवरत..,
आदमी अगर
निरंतर सुनता रहे
ठक-ठक
खट-खट
साथ-साथ;
बहुत संभव है
उसकी सोच निखर जाए,
खट-खट तक
पहुँचने से पहले
ठक-ठक
सँवर जाए..!
© संजय भारद्वाज
(रात्रि 9 बजे, दि. 3.10.2015)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
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≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈