श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – पदचाप
मेरी पदचाप,
तुम्हारी पदचाप,
इंसानी पदचाप..,
इसकी पदचाप,
उसकी पदचाप,
भेड़ियाई पदचाप..,
शनै:-शनै:
इंसानी पदचाप
दबती गई,
भेड़ियाई पदचाप
उभरती गई,
दबना हमेशा
ख़त्म होना नहीं होता,
दबना और दबे रहना
निष्क्रिय होना होता है,
यही समय है;
बटोरकार सारी इंसानियत
कदमताल करो,
निश्चय का महामंत्र पढ़ो;
पदचाप बढ़ाओ,
आगे बढ़ो,
शाश्वत सत्य है-
मनुष्य के अंगदी
पैरों की पकड़ के आगे
चौपायों की गद्देदार
पकड़ टिकती नहीं है,
सक्रिय मानवता के आगे
दानवता ठहरती नहीं है..!
© संजय भारद्वाज
(16 जून 2017, प्रातः 7:53 बजे)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
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💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥
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≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈