श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
तुम सहमत मत होना
मेरे विचार से,
यदि हो भी जाओ
तो मत करना समर्पण,
बचा रखना
झीनी-सी अंतररेखा..,
अंतररेखा के
इस पार मैं
उस पार तुम,
चिंतन करना
मनन करना
मंथन करना,
मेरे-तुम्हारे
विचारों की बिलोई
उत्पन्न करेगी नया आविष्कार..,
आविष्कार उस आग का
जो चकमक के
आपसी घर्षण से
जन्मती है और सचमुच
गलानेे लगती है दाल,
सेंकने लगती है रोटियाँ;
उन अर्थों में नहीं
जिन्हें मुहावरों के आवरण में
बदनाम कर रखा है शब्दकोशों ने,
आग से सचमुच
भरता है भूख का कुआँ
बुझती है पेट की आग..,
इस आग को
सदैव जलाये और
जिलाए रखना मित्रो!
© संजय भारद्वाज
(गुरुवार दि. 14 जुलाई 2017, प्रातः 9 बजे)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य 0अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
पेट की आग ,
विचारों की ऊर्जा -विचारों की बिलोई उत्कृष्ट विचाराभिव्यक्ति संजय जी !
अभिनंदन
सुंदर अभिव्यक्ति !!!
विचारों की बिलोई। सुंदर अभिव्यक्ति।??