श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आदर्श ? ?

संघर्ष निरंतर जारी है। हर वर्ग का हुजूम मिलकर उस एक शब्द को शब्दकोश से बहिष्कृत करने में जुटा है। मुट्ठी भर हाथ हैं जो प्रतिकूल स्थितियों में भी अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर हुजूम से लोहा ले रहे हैं। इन मुट्ठी भर लोगों की अडिगता से ही शब्दकोश में ‘आदर्श’ अब भी साँसे भर रहा है।

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 12:10 बजे, 4 जून 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना ज्येष्ठ पूर्णिमा तदनुसार 21 जून से आरम्भ होकर गुरु पूर्णिमा तदनुसार 21 जुलाई तक चलेगी 🕉️

🕉️ इस साधना में  – 💥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। 💥 मंत्र का जप करना है। साधना के अंतिम सप्ताह में गुरुमंत्र भी जोड़ेंगे 🕉️

💥 ध्यानसाधना एवं आत्म-परिष्कार साधना भी साथ चलेंगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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