श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – शून्य आदि…शून्य इति
शून्य उत्सव है। वस्तुतः महोत्सव है। शून्य में आशंका देखते हो, सो आतंकित होते हो। शून्य में संभावना देखोगे तो प्रफुल्लित होगे। शून्य एक पड़ाव है आत्मनिरीक्षण के लिए। शून्य अंतिम नहीं है। वैसे प्रकृति में कुछ भी अंतिम नहीं होता। जीवन, पृथ्वी सब चक्राकार हैं। प्रकृति भी वृत्ताकार है। हर बिंदु परिधि की इकाई है और हर बिंदु में नई परिधि के प्रसव की क्षमता है। प्रसव की यह क्षमता हर बिंदु के केंद्र बन सकने की संभावना है।
यों गणित में भी शून्य अंतिम नहीं होता। वह संख्याशास्त्र का संतुलन है। शून्य से पहले माइनस है। माइनस में भी उतना ही अनंत विद्यमान है, जितना प्लस में। शून्य पर जल हिम हो जाता है। हिम होने का अर्थ है, अपनी सारी ऊर्जा को संचित कर काल,पात्र,परिस्थिति अनुरूप दिशा की आवश्यकतानुसार प्रवहमान होना। शून्य से दाईं ओर चलने पर हिम का विगलन होकर जल हो जाता है। पारा बढ़ता जाता है। सौ डिग्री पारा होते- होते पानी खौलने लगता है। बाईं ओर की यात्रा में पारा जमने लगता है। एक हद तक के बाद हिमखंड या ग्लेशियर बनने लगते हैं। हमें दोनों चाहिएँ-खौलता पानी और ग्लेशियर भी। इसके लिए शून्य होना अनिवार्य है।
शून्य में गहन तृष्णा है, साथ ही गहरी तृप्ति है। शून्य में विलाप सुननेवाले नादान हैं। शून्य परमानंद का आलाप है। इसे सुनने के लिए कानों को ट्यून करना होगा। अपने विराट शून्य को निहारने और उसकी विराटता में अंकुरित होती सृष्टि देख सकने की दृष्टि विकसित करनी होगी। शून्य के परमानंद को अनुभव करने के लिए शून्य में जाएँ।
…मैं अपने शून्य का रसपान कर रहा हूँ। शून्य में शून्य उँड़ेल रहा हूँ , शून्य से शून्य उलीच रहा हूँ,।….शून्य आदि है, शून्य इति है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी
इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈