श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – आदमकद
(20 मार्च – गौरैया दिवस पर विशेष )
ये उन दिनों की बात है
जब सचमुच आदमकद था आदमी,
केवल ऊँचाई से नहीं
मन से भी ऊँचा था आदमी,
ऊँची-ऊँची फसलें
उगाता था आदमी,
थोड़ा सा हिस्सा
नन्हीं गौरैया के लिए
रख छोड़ता था आदमी…,
गौरैया के मन में
आदमी का कद बहुत ऊँचा था,
शायद यही वज़ह थी
आदमकद था आदमी….
आंगन आदमी के घर का हो,
आंगन आदमी के मन का हो,
आंगन में जगह बहुत बड़ी थी
जिसमें गौरैया को घोंसला बनाने,
चुरुंगनों को उड़ने की अनुमति थी,
सच पूछें तो हिल मिलकर रहते थे
गौरैया और आदमी….
आदमी को गौरैया से खास नेह था,
मानो गौरैया का संरक्षक था आदमी,
चिरैया में अपनी बेटी को देखता,
बेटी में चिरैया निहारता था आदमी…
ये वे दिन थे
जब धरती को
माँ कहता था आदमी,
फिर एकाएक आदमी का मन
सिकुड़ने लगा,
विधान का चक्र उल्टा फिरने लगा,
आदमी, धरती का सौदा करने लगा..,
गोरैया की इंच भर जगह
आदमी को खलने लगी,
इंच-इंच धरती
अब बिकने लगी,
आदमी की आँख में
दुर्योधन उतरने लगा,
घर का हो या मन का
आदमी के आँगन से
गोरैया का निष्कासन होने लगा,
फिर आदमी ने काट डाले पेड़,
आदमी ने नोंच डाले घोंसले,
तिल-तिल मरने लगी चिड़िया..,
लालची आदमी ने
धरती की कोख में
उतार दिया हलाहल,
और फसलों पर
छिड़क दिया ज़हर,
तड़प-तड़प कर
मरने लगी गोरैया,
फिर आदमी ने
गोरैया के ताबूत में
ठोंक डाली आखिरी कील,
मोबाइल टावर खड़े कर
चिरैया की उत्पत्ति ही रोक डाली..,
अब आदमी के पास घर है,
अब आदमी के पास मन है,
पर घर का हो या मन का,
किसी आँगन में अब
फुदकती नहीं चिरैया…,
बगुला भगत निकला आदमी,
गोरैया को मिटाकर
गोरैया दिवस मनाने लगा आदमी..,
आदमजात में कोई-कोई कवि होता है,
कवि अपने समय की आँख होता है,
इस आँख में सपना पलता है,
प्रकृति अपना चक्र घुमायेगी,
बीते दिन फिर लौटा लायेगी,
साथ-साथ जिएँगे गोरैया और आदमी,
गोरैया का घर-आँगन
फिर महक उठेगा,
बौना आदमी,
गोरैया के मन में
एक दिन फिर आदमकद हो उठेगा..!
© संजय भारद्वाज
7 मार्च 2022, रात्रि 2:38 बजे
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है
प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈