श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ पुनर्पाठ – चुप्पियाँ – 5 ☆
तुम्हारी चुप्पी मूल्यवान है,
जितना चुप रहते हो
उतना मूल्य बढ़ता है,
वैसे तुम्हारी चुप्पी का मूल्य
कहाँ तक पहुँचा?
…और बढ़ेगा क्या..?
मैं फिर चुप लगा गया..!
# घर में रहें, सुरक्षित रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
( 1.9.18, रात 11:40 बजे)
( *’चुप्पियाँ’* कविता संग्रह से)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
रचनाकार की चुप्पी इतनी बेशकीमती है कि कीमत चुकाते-चुकाते एक जीवन क्या अनेक जीवन
लगने की संभावना है , इस चुप्पी के सदके …..
उत्कृष्ट रचना अभिव्यक्ति के ऐवज में समर्पित है केवल वारीफेरी