श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆  शिक्षा – दीक्षा

जो धान बोता है, उसके खेत में धान लहलहाता है। गेहूँ बोने वाला, गेहूँ की फसल पाता है। जिसने चना रोपा, उसने चना काटा। आम उगाने वाला आम का स्वामी हुआ। दीक्षा, जीवन को सरलता और सहजता प्रदान करती है। सरल और सहज के घर आनंद वास करता है।

शिक्षित ईर्ष्या बोता है, सम्मान काटना चाहता है। षड्यंत्र रोपता है, यश उगा देखने की इच्छा करता है। पैसा, पद, जुगाड़ से बनी अपनी अस्थायी स्थिति से स्थायी लाभ लेना चाहता है। बीज के तत्व और कोख में होनेवाली प्रक्रिया परिवर्तित करने की विफल कुचेष्टा, कुंठा और अवसाद को घर करने देती है।

सुना है कि सरकार बच्चों के ऑनलाइन अध्ययन अभियान का नामकरण ‘दीक्षा’ करने जा रही है। काश सारे शिक्षित, दीक्षित हो सकें!

कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से।)
( 2.9.18, प्रातः 6:59 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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