श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ – 10 ☆
…….पूर्ण से
पूर्ण चले जाने पर भी
पूर्ण ही शेष रहता है,
चैनलों पर सुनता हूँ
प्रायोजित प्रवचन
चुप हो जाता हूँ..,
सारी चुप्पियाँ
समाप्त होने के बाद भी
बची रहती है चुप्पी,
पूर्णमिदं……
……..पूर्णमेवावशिष्यते!
# दो गज की दूरी, है बहुत ही ज़रूरी।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(प्रातः 7:49 बजे, 2.9.18)
नि:संदेह सारी चुप्पियाँ समाप्त होने के बाद भी बची रहती है चुप्पी
पूर्णंमिदं ….
पूर्णमेवावशिष्यते !
एक साधक की साधना का सार ,निचोड़ है चुप्पी
अध्यात्म की पराकाष्ठा है रचनाकार की यह रचना
तिसपर वरद हस्त है माँ सरस्वती का ………. असाधारण रचना ………
पूर्णमिदं…
…पूर्णमेवावशिष्यते!
हमारे उपनिषदों में छिपे अर्थ हमारी जीवन रेखा…
पूर्ण से पूर्ण तक की कथा… साधुवाद।