श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ सत्य 

प्रलय के बाद

बचा रहता है सत्य,

सृजन के पूर्व

विद्यमान होता है सत्य,

सत्य आदिबिंदु है,

सत्य इतिबिंदु है,

अपरंपार ही सत्य

संसार भी सत्य,

ईश्वर ही सत्य

नश्वर भी सत्य,

ज्ञान ही सत्य

विज्ञान भी सत्य,

यथार्थ ही सत्य

कल्पना भी सत्य,

सूक्ष्म ही सत्य

स्थूल भी सत्य,

एक ही सत्य

अनेक भी सत्य,

सत्य अनादि

सत्य अनंत,

सत्यं परं धीमहि

एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति!

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 9.55 बजे, 17.6.19)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना

Rita Singh

सत्य ही एक मात्र शाश्वत है।

वीनु जमुआर

सत्यं परं धीमहि….

माया कटारा

चराचर में व्याप्त है सत्य …सत्य ही ईश्वर है ……..