(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ बहू-बेटी ☆
*पुनर्पाठ में आज एक लघु कथा-
“भाईसाहब प्रणाम! कैसे हैं?” उस दिन समाज के परिचय सम्मेलन में वे मिल गये थे।
“जरा अनुकंपा रखो छोटे भाई पर भी।”
“क्या बात है”, मैंने गंभीरता से पूछा।
“आपका भतीजा इंजीनियर होकर आई.टी. में दो साल से नौकरी पर है। बढ़िया पैकेज है। कोई अच्छी लड़की बताओ। विशेष मांग नहीं है अपनी पर हाँ शादी अपने स्टेटस की हो। खास बात यह कि लड़की, बेटे को सूट करने वाली ऊँची लिखी-पढ़ी हो लेकिन पूरी घरेलू हो। लड़की जात मेहनती तो होनी ही चाहिए। वैसे भी अपना बड़ा परिवार है। आकर सारा घर संभाल ले”, एक साँस में कह गये वे।
कुछ रोज़ बाद फिर टकरा गये एक शादी में।
“भाईसाहब प्रणाम!….आपके भतीजे का रिश्ता ले लिया है आपके आशीर्वाद से। वो आपने बताया था न, अपने साधुराम जी की पोती से ही तय हुआ है। तारीख निकलते ही हाजिर होता हूँ। पहला कार्ड तो आपको देना बनता ही है।
….जी भाईसाहब एक अनुकंपा और करो।”
“कहिये, आपके किस काम आ सकता हूँ?”
“अपनी टीकू भी ब्याह लायक हो गई है। कोई ढंग का लड़का बताओ। शादी जैसी बताएँगे, कर देंगे। हाँ बस देखना कि परिवार छोटा हो। हो सके तो लड़का अकेला ही रहता हो। सारे सुख हों। अपनी टीकू को पानी का गिलास भी उठाकर न पीना पड़े।”
नमस्ते कर मैं बाहर निकला। सामने सरकारी अस्पताल की दीवार पर स्लोगन लिखा था, ‘दोनों घर की शान, बहू-बेटी एक समान।’
© संजय भारद्वाज
2 नवंबर 2017, रात्रि 9:30 बजे।
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।
मोबाइल– 9890122603
लखनऊ में एक शब्द चलता है ,*धाँसू*।
बस यह लेख भी धाँसू है।अर्थात अति उत्कृष्ट!!
चित्र के साथ अधिक रोचक बन गया।????????????????????
सुंदर रचना
विवाह की आधुनिक माँगे दर्शाता व्यंग्य-बहुत खूब।