श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ ह्रास

 

एक ने कहा,

मेरे भीतर

कुछ कम हो रहा है,

अनेक ने कहा,

उनके  भीतर

कुछ कम हो रहा है,

इसने कहा,

उसके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

उसने कहा,

उसके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

सबने कहा,

सबके भीतर

कुछ कम हो रहा है,

हरेक को भीतर कुछ कम होने का भास है,

मनुज! संभवत: यही मनुष्यता का ह्रास है..!

 

©  संजय भारद्वाज

14 जुलाई 2020, प्रात: 11:13 बजे

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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सुशील कुमार तिवारी

संभवतः मनुष्य समझने में असमर्थ है

Shyam Khaparde

अच्छी रचना

माया कटारा

हर एक को कुछ कम होने का भास है और यह भास ही मनुष्यता के ह्रास की ओर इंगित करता है, मनुष्यता का अधःपतन घातक है – रचनाकार सचेत कर रहा है।