श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
पुनर्पाठ में आज-
☆ संजय दृष्टि ☆ शैवाली ☆
जैसे शैवाली लकड़ी,
ऊपर से एकदम हरी
कुरेदते जाओ तो
भीतर निविड़ सूखापन,
कुरेदना औरत का मन कभी,
औरत और शैवाली लकड़ी
एक ही प्रजाति की होती हैं..!
रात्रि 8:37, 15.7.19
आपका दिन सार्थक हो।☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
नारी की महानता का अद्भुत चित्रण
‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ उक्ति को चरितार्थ करती रचना..
‘…कुरेदना औरत का मन कभी..’ द्रष्टा की संवेदनशील दृष्टि क्या देख पाती है वह तो उस दृष्टि पर निर्भर है…स्त्री मन को जान लेना इतना आसान भी तो नहीं -देवो ना जानाति कुतो मनुष्यः???