श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ सिद्ध प्रमेय ☆
बेहाल वृत्त खीझता है
कभी केंद्रबिंदु पर,
त्रिज्या पर कभी,
कुढ़ जाता है, थककर
स्थितियों के गोलार्ध में
धम्म से धँस जाता है,
केंद्रबिंदु और त्रिज्या
दृष्टि झुकाए
चुपचाप पी लेते हैं
वृत्त का पूरा रोष,
नि:शब्द सह लेते हैं
सारा आक्रोश,
लज्जित वृत्त
त्रिज्या के सहारे
फिर साधता है संवाद
केंद्रबिंदु से..,
सच्चाई जानते हैं, सो
थोड़ा बनने,
थोड़ा ठनने और
कुछ ऐंठने के बाद
तीनों ठठाकर
हँसने लगते हैं,
यकायक वे
बाप, बेटी
और माँ में
बदलने लगते हैं!
© संजय भारद्वाज
14 अगस्त 2020, रात्रि 3:25 बजे।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
बाप, माँ, बेटी के रूप में वृत्ताकार घूमती जिंदगी-अनुपम ज्यामितीय अभिव्यक्ति।