श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
ॐ गं गणपतये नम:। सभी मित्रों को श्रीगणेश चतुर्थी की बधाई।
त्योहार सादगी से मनाएँ। कोरोनाकाल को दृष्टिगत रखते हुए सभी नियमों का पालन करें।
प्रार्थना है कि विघ्नहर्ता, वायरस के विघ्न को शीघ्रतिशीघ्र नष्ट करने में मनुष्य के प्रयासों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें।
☆ संजय दृष्टि ☆ जीवनसूत्र.. ☆
पानी उथला हो तो उछाल मारता है, गहरा मंद-मंद बहता है। मनुष्य के शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है।
जो पिंड में, वही बिरमांड में। मनुष्य और पानी का अंतर्सम्बंध समझ लो तो जीवन को जीने का सूत्र मिल जाता है।
जीवन सूत्र है पानी।
© संजय भारद्वाज
14 जून 2020, प्रात: 9:13
# निठल्ला चिंतन
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603