श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ अक्षय ☆
मैं पहचानता हूँ
तुम्हारी पदचाप,
जानता हूँ
तुम्हारा अहंकार भी,
झपटने, गड़पने
का तुम्हारा स्वभाव भी,
बस याद दिला दूँ,
जितनी बार गड़पा तुमने,
नया जीवन लेकर लौटा हूँ मैं,
तुम्हें चिरंजीविता मुबारक
पर मेरा अक्षय होना
नहीं ठुकरा सकते तुम..!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 12.11बजे, 22.10.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
रचनाकार का अक्षय होना जब तय है तो किसी दूसरे की चिरंजीविता किस काम की ? अक्षयी भव रचनाकार …..
हृदय से धन्यवाद आदरणीय।
सत्य सदैव अविनाशी है… आत्मविश्वास झलकाती रचना! ???
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण रचना। आप अक्षय रहें यही कामना है।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।