श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ बावरापन ☆
समय खड़ा है वहीं
अक्स लिए
एक बावरे लड़के
एक बावरी लड़की का,
दोनों की आँख में
एक दुनिया बसती थी,
ताज्जुब है, दुनिया
एक ही शख्स से शुरू होती
एक ही शख्स पर थमती थी,
समय मिले कभी
तो समय से
मिलने चले आओ,
आँखें धुँधला गईं
दुनिया ढह गई
लड़का-लड़की भी नहीं रहे,
पर बौराया-सा समय
खड़ा है वहीं,
सुना है,
समय बावरा हो गया है!
© संजय भारद्वाज
( कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
वाह !! क्या ही सुंदर अभिव्यक्ति है, *बौराया सा समय* सच में कभी कभी आपकी कविताओं को पढ़कर लगता है कि आपके हृदय और मस्तिष्क का ताल मेल यों बैठा हुआ है जैसे झरने के साथ उसके बहने का संगीत, नदी में कल- कल की ध्वनि, बादलों की गर्जन जिससे दुनिया के ही कान फट जाए और कभी जंगल में खिलते फूल की मधुर गन्ध जिससे तितलियाँ , भौरें दीवाने हो उठे।
संवेदनशीलता, संदेश, काव्यगुण सभी कुछ जैसे एक थाल में सजकर आते हैं।
हर कड़ी में नयापन, नई दिशा, नई सोच!!
उनके न रहने पर इंतजार करता समय वहीं बावरा बना खड़ा है-अनुपम अभिव्यक्ति।