श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ लघुकथा – क्वारंटीन ☆
…काका, दवाइयाँ नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होगे? डॉक्टर ने कहा था कि बुखार नहीं टूटा तो कोविड का टेस्ट कराना पड़ेगा.., वृद्धाश्रम का केयरटेकर अनूप जी से कुछ नाराज़गी से बोला।
अनूप जी ने प्रश्नवाचक निगाह से श्यामलाल को देखते रहे। मानो पूछ रहे हों कि कोविड पॉजिटिव आ गया तो क्या होगा?
…मामूली-सा भी निकला तो भी कम से कम 14 दिन के लिए क्वारंटीन होना पड़ेगा।
प्रश्नवाचक निगाह उठती, उससे पहले अनुभवी श्यामलाल अगला सवाल भी पढ़ चुका था।
…क्वारंटीन मतलब अपने कमरे में अलग-थलग, दुनिया से कटकर रहना। न कहीं आ सकते हैं, न कहीं जा सकते हैं। न कोई सुनने आयेगा, न सुनाने। बस खुद ही बोलो, खुद ही सुनो।
प्रश्नवाचक निगाहों में अजीब से भाव आए। जैसे कुछ गिन रही हों। हिसाब लगाया कि वृद्धाश्रम आये कितने बरस हुए।
‘श्यामलाल, मामूली नहीं संगीन कोविड है। पिछले 14 बरस से क्वारंटीन हूँ मैं..’, एकाएक जोरदार ठहाका लगाकर अनूप जी बोले। ठहाका पूरा होते-होते जाने क्यों उनकी आँखों से खारा पानी छलकने लगा।
© संजय भारद्वाज
रात्रि 11:32, 23.11.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
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