श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ पाखंड ☆
मुखौटों की
भीड़ से घिरा हूँ,
किसी चेहरे तक
पहुँचूँगा या नहीं
प्रश्न बन खड़ा हूँ,
मित्रता के मुखौटे में
शत्रुता छिपाए,
नेह के आवरण में
विद्वेष से झल्लाए,
शब्दों के अमृत में
गरल की मात्रा दबाए,
आत्मीयता के छद्म में
ईर्ष्या से बौखलाए,
मनुष्य मुखौटे क्यों जड़ता है,
भीतर-बाहर अंतर क्यों रखता है?
मुखौटे रचने-जड़ने में
जितना समय बिताता है
जीने के उतने ही पल
आदमी व्यर्थ गंवाता है,
श्वासोच्छवास में कलुष ने
अस्तित्व को कसैला कर रखा है,
गंगाजल-सा जीवन जियो मित्रो,
पाखंड में क्या रखा है..?
© संजय भारद्वाज
रात्रि 11.52 बजे,15.10.19
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
मानव जीवन गंगाजल-सा जीना चाहिए। प्रेरणादायक अभिव्यक्ति।
पाखंड -रचनाकार एक पवित्र गंगाजलीय आध्यात्मिक प्रेरणास्रोत बनकर सामने आता है , जितना समय पाखंडी मुखौटे बदलने में लगाता है , काश ! अपनी आत्मिक उन्नति में लगाता , भवसागर तर जाता … आज का उत्सव सबके दिल में ज्ञान का दीप जलाएगा …. शुभं ही शुभ होगा । अभिवादन रचनाकार …