श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ अन्यमनस्क ☆
वह नहीं लिख पाया
आज कुछ भी,
आश्चर्य!
उसके लेखन पर
आती रहीं
प्रतिक्रियाएँ तब भी,
शब्दों की भवभूति में
दोनों की अगाध
आस्था होती है,
अ-लिखा बाँच लेना
सर्जक-पाठक
के सम्बंधों की
पराकाष्ठा होती है!
© संजय भारद्वाज
(संध्या 6:30 बजे, 11 अप्रैल 2019)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
अ-लिखे को बाँच लेना ही सर्जक पाठक के संबउंधों की पराकाष्ठा है।
सर्जक एवं पाठक का अनोखा रिश्ता होता है , किसी कारण सर्जक लिख नहीं पाया तो पाठक अलिखे को भी पढ़ पाता है और देता है प्रतिक्रिया एक अनोखी समझ …..अद्भुत नाता …….