श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆
पैसा कमाता है आदमी,
पैसे के पहियों पर
दौड़ने लगता है आदमी,
आदमी और पैसा कमाता है,
पैसे को लग जाते हैं पंख
उड़ने लगता है आदमी,
आदमी बहुत पैसा कमाता है,
आदमी ढेर पैसा कमाता है,
निगाहों में चढ़ने लगता है आदमी!
अब पैसा खाता है आदमी,
अब पैसा पीता है आदमी,
पर पैसे की सवारी अब
नहीं कर नहीं पाता थुलथुला आदमी !
ज्यों-ज्यों ज़बान पर चढ़ता है पैसा
त्यों-त्यों निगाहों से उतरता है आदमी !
इससे उस तक,
आदि से इति तक,
न कहानी बदलती है,
न नादानी बदलती है,
पैसा, आदमी की
नादानी पर हँसता है,
कवि, पैसे और आदमी की
कहानी पर हँसता है!
© संजय भारद्वाज
(प्रात: 9:06 बजे, 2.11.20)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
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