हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – एक दिन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  एक दिन

 

एक दिन मेरे पास चार-छह एकड़ में फैला बंगला होगा….एक दिन मेरे पास दुनिया की सबसे महंगी कार होगी….एक दिन मेरे पास अपना चार्टर्ड प्लेन होगा….एक दिन मेरे पास ये होगा….एक दिन मेरे पास वो होगा….।

आकांक्षा को कर्म का साथ नहीं मिला। दिन आते रहे, दिन जाते रहे। उस एक दिन की प्रतीक्षा में हर दिन यों ही बीतता रहा। एकाएक एक दिन, सचमुच वो एक दिन आ गया।

उस दिन वह मर गया।

आज का दिन कर्मठ हो।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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