श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – धरना ☆
वह चलता रहा
वे हँसते रहे..,
वह बढ़ता रहा
वे दम भरते रहे..,
शनै:-शनै: वह
निकल आया दूर,
इतनी दूरी तय करना
बूते में नहीं, सोचकर
सारे के सारे ऐंठे हैं..,
कछुए की सक्रियता के विरुद्ध
खरगोश धरने पर बैठे हैं..!
© संजय भारद्वाज
(3.01.2020)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
शनैः शनैः पर निरंतर चलने वाले कछुए से खरगोशों का ऐंठकर धरने पर बैठना लाजिमी था क्योंकि उसकी निरंतर प्रगति ने उनके तीव्र व द्रुतगामी उपलब्धियों ने उन् चिंतिंत जो कर दिया था।
सक्रियता के विरुद्ध धरने पर बैठना…अद्भुत सामयिक व्यंग्य!
कछुए की सक्रियता के विरुद्ध खरगोशों का धरने पर बैठना न केवल अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश है बल्कि अकेली जान के पीछे सामूहिक चुनौती है – समसामयिक व्यंग्यात्मक प्रसंग …….