श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
‘एक भिखारिन की मौत’ के अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन
संजय दृष्टि – होली
रंग मत लगाना
मुझे रंगों से परहेज़ है
उसने कहा था,
अलबत्ता
उसका चेहरा
चुगली खाता रहा
आते-जाते
चढ़ते-उतरते
फिकियाते-गहराते
खीझ, गुस्से,
झूठ, दंभ,
कूपमंडूकता,
दिवालिया संभ्रांतपन के
अनगिनत रंग
जताता रहा,
और रँग दे,
और.., और,
इंद्रधनुष से सरोबार तन
पहाड़ी झरने-सा कोरा मन
बढ़ चली बच्चों की टोली
होली है भाई होली !
? शुभ होली। ?
© संजय भारद्वाज
(कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
बहुत खूब ऊपर से मना और मन में भीगने का आतुर। बहुत सुंदर चित्रण होली का संजय जी।
धन्यवाद आदरणीय।
धूलिवंदन के अवसर पर सप्तरंगी रंगों में डूबा बच्चों का खुशमिजाज चेहरा , ऊपर से ना ना अंदर से हाँ हाँ करता दिल का रंगों से सराबोर होने की इच्छा – सुंदर भावाभिव्यक्ति ……..