हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि – शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

(आज का दैनिक स्तम्भ ☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆  अपने आप में विशिष्ट है। ई- अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है।)

☆ संजय दृष्टि  –  शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध

नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले  नागरिकों को श्रद्धांजलि।

मित्रो!

26/11/2008 से शुरू हुई अगली तीन भयावह रातें शायद ही कोई भारतीय भूला होगा। भारत की औद्योगिक राजधानी मुम्बई विदेशी खूनियों के मानो कब्जे में थी। भारतीय होने के नाते मैं और सुधा जी भी करोड़ों देशवासियों की तरह व्यथा और आक्रोश में थे। निरंतर विचार चल रहा था कि एक आम नागरिक की हैसियत से आतंक के विरुद्ध इस लड़ाई में हम सहयोग कैसे कर सकते हैं? लेखक होने के नाते मुझे शस्त्र के रूप में कलम दिखी। डिजाइनर सुधा जी ने ग्राफिक्स को चुना। शब्द और चित्र के इस संगम ने जन्म दिया संभवतः एक अनन्य प्रदर्शनी-‘शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’ को।

*’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* में लगभग 150 पोस्टर हैं। इनमें मुम्बई हमले के बाद भारतीय और अप्रवासी भारतीयों की कविताओं पर आधारित पोस्टर, आतंक को लेकर नागरिक द्वारा अपेक्षित सतर्कता, आतंक से लड़ने में  आम आदमी की भूमिका, आतंकी हमलों के चित्र, आतंकवाद के दूरगामी परिणाम जैसे अनेक विषय शब्द और चित्र के माध्यम से दर्शाये गए हैं।    

मित्रो! 26 जनवरी 2009 को पुणे के यशवंतराव आर्ट गैलरी से आरम्भ यह यात्रा मुम्बई के रवीन्द्र नाट्य मंदिर होते हुए अब तक हजारों नागरिकों तक पहुँच चुकी है।  पिछले कुछ वर्षों से इसे सीधे महाविद्यालयीन छात्र- छात्राओं तक पहुँचाने के लिए हमने इसका एक लघु संस्करण तैयार किया है। अनेक महाविद्यालयों में इसे प्रदर्शित किया जा चुका है।

यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध  जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

: 5.04 बजे, 23.11.2019

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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