श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – अपराजेय
यूट्यूब लिंक >> अपराजेय – श्री संजय भारद्वाज जी की कविता
“मैं तुम्हें दिखता हूँ?”
उसने पूछा…,
“नहीं…”
मैंने कहा…,
“फिर तुम
मुझसे लड़ोगे कैसे..?”
सुनो-
“…मेरा हौसला
तुम्हें दिखता है?”
मैंने पूछा…,
“नहीं…”
“फिर तुम
मुझसे बचोगे कैसे..?”
ठोंकता है ताल मनोबल,
संकट भागने को
विवश होता है,
शत्रु नहीं
शत्रु का भय
अदृश्य होता है!
# घर में रहें। सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें। #
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
सच ही है-शत्रु नहीं , शत्रु का भय अदृश्य होता है।अति सुंदर प्रस्तुति।
वाह! अति सुन्दर और संवेदनशील अभिव्यक्ति
उबूंटू
आपके हौसले का पलड़ा भारी रहा ।
आत्मविश्वासी सक्षम होता है और साबित होता है अपराजेय ….जीतता वही है जो डटकर सामना करता है।